Saturday, February 8, 2014

अमृत-धारा |कबीर-८

                                           मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह आज का कार्य कल पर टालता रहता है |वह यह समझ नहीं पा रहा है कि कौन सा कार्य कब करना है ?वह अपने शरीर को आराम देने के लिए ही कार्य करता है |उसका आगे क्या होगा यह वह सोचता भी नहीं है |भौतिकता में वह इतना रम जाता है कि ईश्वर को प्राप्त करने की उसकी सोच तक ही नहीं बन पाती है |सांसारिक कार्य को वह सबसे अधिक महत्त्व देता है और परमात्मा के कार्य को वह एक एक दिन कर आगे के लिए टालता जाता है |और वह एक दिन उसके जीवन में कभी भी नहीं आता है,तब तक जीवन का संध्या काल दस्तक दे चूका होता है |जो कार्य सम्पूर्ण उर्जा से संपन्न हो सकता है ,वह जीवन के संध्याकाल में शरीर की सारी उर्जा के क्षय होने के बाद कैसे संभव हो सकता है ?परन्तु यह बात उसको मृत्यु पर्यंत समझ नहीं आती |कबीर इसी बात को कहते हैं-
                                                   रात गंवाई सोय के,दिवस गंवाया खाय |
                                                   हीरा जन्म अमोल है,कौड़ी बदले जाय ||
                       दिन में अपने जीवनयापन में लगे रहते हो और रात को थकहारकर सो जाते हो |यही एक आदमी का दिन प्रतिदिन का जीवन हो गया है |जबकि जीवन को ऐसा नहीं होना चाहिए |यह मानव जीवन अनमोल है |यह जन्म तो एक लंबे कई जीवन जीने के उपरांत उपलब्ध हुआ है ,यह मानव जीवन हीरे के समान है और आप इसे कौडियों के बदले समाप्त किये जा रहे हो |मानव जीवन का जो उद्देश्य होना चाहिए उस को पूरा करने के स्थान पर तुम अपने शरीर और इस संसार की भौतिकता में डूब कर बेकार कर रहे हो |
                                                   पांच पहर धंधे गया,तीन पहर गया सोय |
                                                   इक पहर हरी नाम बिनु,मुक्ति कैसे होय ||
                     प्राचीन काल में समय की इकाई प्रहर होती थी |एक प्रहर तीन घंटे का होता है |इस प्रकार एक दिन-रात में कुल आठ प्रहर होते है |कबीर कहते हैं कि मनुष्य अपने पाँच प्रहर तो जीविका कमाने के लिए धंधा करता रहता है और तीन प्रहर अपनी थकन मिटने के लिए सोकर बीता देता है |इस प्रकार एक दिन के आठों प्रहर वह इन्ही दो कार्यों में बीता देता है |उसे इस दौरान परमात्मा का भी स्मरण नहीं रहता |और परमात्मा के बिना उसकी मुक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती |कबीर यहाँ यह कहना चाहते हैं कि सब कार्य करते हुए भी कुछ समय परमात्मा के कार्यों के लिए भी निकालना चाहिए |
                                   दुर्लभ मानुस जन्म है,देह न बारम्बार |
                                  तरुवर ज्यों पत्ती झडे,बहुरि न लागे डार ||
                 अंत में कबीर मानव जन्म के बारे में कहते हैं कि यह मानव जन्म बहुत ही दुर्लभ है,यह बार बार मिलना संभव नहीं है |जैसे किसी पेड़ पर लगा पत्ता झड कर नीचे गिर जाता है तो फिर वह पत्ता उस पेड़ पर दुबारा से नहीं लगाया जा सकता |अतः मानव जीवन का सदुपयोग कर लेना ही बुद्धिमता है |
                  || हरिः शरणम् || 

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