किसी भी बात को आसान और मधुर तरीके से कहने का अंदाज़ अगर सीखना हो तो कवि बिहारी से सीखा जा सकता है |इस समाज में भिन्न भिन्न प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं |सबसे बड़ी बात यह है कि सबके अपने अपने स्वभाव होते है |और सब अपने उसी स्वभाव के अनुरूप आचरण करते हैं |और इससे भी बड़ी बात यहाँ यह हहै कि हर कोई अपना स्वभाव तो बदलने की कोशिश करता नहीं है और संपर्क में आने वाले व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तन करने का दुस्साहस अवश्य ही करता है |इस संसार में सब कुछ करना संभव हो सकता है,परन्तु किसी अन्य व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तन करना किसी के लिए भी संभव नहीं है |
इस भौतिक संसार में सभी प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं|जिसमे कुछ अच्छे स्वभाव वाले होते है और कुछ अति निम्न स्तर के स्वभाव वाले |अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति के स्वभाव को परिवर्तित करने की किसी को भी आवश्यकता नहीं होती है परन्तु निम्न स्तर के स्वभाव वाले व्यक्ति के स्वभाव को बदलने की ईच्छा हर कोई में होती है |बिहारी कहते हैं कि आपका यह प्रयास बेकार ही जायेगा क्योंकि किसी का भी स्वभाव बदलना किसी के भी बस में नहीं होता है |बिहारी ने कहा है-
कोटि जतन कोऊ करे,परे न प्रकृतिहि बीच |
नल बल जल ऊंचौ चढे,तऊ नीच को नीच ||
पानी का स्वभाव ऐसा होता है कि वह ऊपर से नीचे की तरफ ही बहता है |विद्युत मोटर और नल की सहायता स उसे ऊपर छत पर बनी पानी की टंकी में चढ़ाया जा सकता है |परन्तु इतने से ही पानी का स्वभाव ऊपर चढने का नहीं हो जाता है |ज्योंही उसे नीचे की तरफ जाने का रास्ता मिलेगा वह ऊपर से नीचे की ओर बहने लगेगा | बिहारी पानी के इस स्वभाव से नीच मनुष्य के स्वभाव की तुलना करते हैं और कहते हैं कि चाहे आप करोड़ों (कोटि )तरह के उपाय करले,कोई भी उपाय प्रकृति प्रदत्त स्वभाव को बदल सकने जैसा कार्य नहीं करने वाला |आपके ये समस्त उपाय व्यर्थ ही साबित होंगे |क्योंकि प्रकृति प्रदत स्वभाव को कोई भी परिवर्तित नहीं कर सकता है |
इस दोहे से हमें यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि अगर आप को किसी व्यक्ति का स्वभाव पसंद नहीं है तो उस व्यक्ति का स्वभाव बदलने का प्रयास कदापि न करें |इससे आपकी उर्जा व्यर्थ में ही नष्ट होगी |बेहतर होगा की आप इस उर्जा का कहीं और उपयोग करें |
|| हरिः शरणम् ||
इस भौतिक संसार में सभी प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं|जिसमे कुछ अच्छे स्वभाव वाले होते है और कुछ अति निम्न स्तर के स्वभाव वाले |अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति के स्वभाव को परिवर्तित करने की किसी को भी आवश्यकता नहीं होती है परन्तु निम्न स्तर के स्वभाव वाले व्यक्ति के स्वभाव को बदलने की ईच्छा हर कोई में होती है |बिहारी कहते हैं कि आपका यह प्रयास बेकार ही जायेगा क्योंकि किसी का भी स्वभाव बदलना किसी के भी बस में नहीं होता है |बिहारी ने कहा है-
कोटि जतन कोऊ करे,परे न प्रकृतिहि बीच |
नल बल जल ऊंचौ चढे,तऊ नीच को नीच ||
पानी का स्वभाव ऐसा होता है कि वह ऊपर से नीचे की तरफ ही बहता है |विद्युत मोटर और नल की सहायता स उसे ऊपर छत पर बनी पानी की टंकी में चढ़ाया जा सकता है |परन्तु इतने से ही पानी का स्वभाव ऊपर चढने का नहीं हो जाता है |ज्योंही उसे नीचे की तरफ जाने का रास्ता मिलेगा वह ऊपर से नीचे की ओर बहने लगेगा | बिहारी पानी के इस स्वभाव से नीच मनुष्य के स्वभाव की तुलना करते हैं और कहते हैं कि चाहे आप करोड़ों (कोटि )तरह के उपाय करले,कोई भी उपाय प्रकृति प्रदत्त स्वभाव को बदल सकने जैसा कार्य नहीं करने वाला |आपके ये समस्त उपाय व्यर्थ ही साबित होंगे |क्योंकि प्रकृति प्रदत स्वभाव को कोई भी परिवर्तित नहीं कर सकता है |
इस दोहे से हमें यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि अगर आप को किसी व्यक्ति का स्वभाव पसंद नहीं है तो उस व्यक्ति का स्वभाव बदलने का प्रयास कदापि न करें |इससे आपकी उर्जा व्यर्थ में ही नष्ट होगी |बेहतर होगा की आप इस उर्जा का कहीं और उपयोग करें |
|| हरिः शरणम् ||
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