Friday, February 28, 2014

भय की समाप्ति |

                                            एक बार एक राज्य में बड़ा ही बलवान पहलवान रहा करता था |उसकी पहलवानी के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे |उस जैसा पहलवान आस पास के किसी भी राज्य में नहीं था |उसको अपनी पहलवानी का बड़ा गुमान था |उसने पूरे राज्य में एलान करवा रखा था कि पहलवानी में उसे कोई भी शिकस्त नहीं दे सकता |उसने आस पास के सभी राज्यों में मुनादी करवा दी कि उसे अखाड़े में जो कोई भी हरा देगा ,वह उसी दिन से पहलवानी छोड़ देगा और उस हराने वाले की गुलामी कबूल कर लेगा |मुनादी वाले दिन ही उस राज्य से एक संत गुजर रहे थे |उन्हें उस पहलवान का यह अहंकार अनुचित लगा |उन्होंने पहलवान की अखाड़े में कुश्ती लड़ने की चनौती स्वीकार करने के साथ साथ  उसे हराने की घोषणा भी कर दी |
                                     अब वे ठहरे एक संत |बिलकुल एक सींकिया पहलवान |लोगों ने संत को समझाया भी कि वह बड़ा खतरनाक पहलवान है |आप क्यों अपनी हड्डी पंसली एक करने पर तुले है ?आप तुरंत ही इस चुनौती को वापिस ले लें |लेकिन संत तो मन में जैसे कुछ और ही ठानकर बैठे थे |अखाड़े में भिड़ने का दिन तय हो गया |निश्चित दिन और स्थान पर तमाशा देखने को भीड़ जुट गई |तय समय से पहले ही संत पहुँच गए वहाँ,उस अखाड़े में |जाते ही अखाड़े के ठीक बीचों बीच पीठ के बल सीधे लेट गए |पहलवान आया और उन्हें कुश्ती के लिए भिडने की चुनौती देने लगा |संत निर्विकार भाव से पूर्ववत अखाड़े के बीच ही लेटे रहे |पहलवान ने उन्हें फिर से चुनौती दी |संत बोले-"भिडने से कौन इंकार कर रहा है?आ, मुझ से भिड़,और कर दे मुझे चित्त |" पहलवान ने कहा -"उठ |आकर मुझ से भिड़|" संत फिर उसी अंदाज़ में बोले-"अरे!जीतने का शौक तो तुझे है और जिसको जीतना है,वह आये और भिडे |" पहलवान यह सुनकर अपने बाल नोचने लगा |बोला-"आप तो पहले से ही चित्त हुए अखाड़े में लेटे हैं ,चित्त हुए को चित्त कैसे किया जा सकता है ?"
                                        संत बोले-"इसका मुझे पता नहीं |अगर जीतना है ,तो आकर मुझे चित्त कर | तब ही मैं अपनी हार मानूँगा  |"पहलवान ने लाख कोशिशे की परन्तु संत तो टस से मस नहीं हुए |अंत में पहलवान ने अपनी हार मान ली | वह पहलवान उन संत से भिड़ ही नहीं सका था |बिना लड़े-भिडे कैसी जीत |इस तरह वह संत को कुश्ती में  हरा नहीं सका | बिना लड़े-भिडे कौन किसको और कैसे हरा सकता है ?इस कहानी में हार हुई-पहलवान के अहंकार की और जीत हुई संत के भय-मुक्त मन की | यद् रखना,केवल भौतिकता  ही हार-जीत का मापदंड नहीं होती |
                                           यहाँ आकर यह कहानी समाप्त हो जाती है और संत हमें एक महत्वपूर्ण सन्देश दे जाते हैं कि जिंदगी में हार-जीत का ख्याल मन से निकाल दो, सुख-दुःख का मत सोचो, पाने-खोने की कभी भी चिंता न करे ,भय अपने आप दिल से निकल जायेगा | भय-मुक्त व्यक्ति ही जिंदगी में कभी भी नहीं हारेगा ,कभी भी दुःख उसके द्वार पर नहीं झांकेगा | इस संसार में हमेशा दो पहलू साथ-साथ रहेंगे | यथा-हार-जीत,सुख-दुःख,पाना-खोना,जीना-मरना आदि |अगर आपको भयमुक्त होना है तो जो आप अपने साथ होने देना नहीं चाहते है ,उसे भी ह्रदय से स्वीकार करना सीखो |अगर आप कोई काम शुरू कर रहे हैं तो आप उस कार्य में निम्नतम आपके साथ क्या हो सकता है उसको प्राप्ति के रूप में स्वीकार करना सीखो |फिर आपको किसी भी प्रकार का भय नहीं सताएगा |इस कहानी में संत शुरु से  ही जानते थे कि पहलवान को हराना उनके लिए संभव नहीं है |इसलिए उन्होंने पहले ही परिणाम को समझते हुए स्वीकार कर लिया और भयमुक्त हो गए |उन्हें अपनी बहादुरी का कोई भ्रम नहीं रहा |इसी कारण से भय मुक्त होकर ही उन्होंने अपनी जीत हासिल की|आप कहेंगे,बिना लड़े भी कभी कोई जीत होती है | मैं भी कहता हूँ कि कोई जीत बिना संघर्ष के कैसे हो सकती है ?परन्तु यहाँ जीत हो रही है ,मन पर छाये भय से और जिसने मन के भय को जीत लिया,फिर उसे संसार की कोई ताकत हरा नहीं सकती |इस संसार में जीतता वही है जो अपने भीतर के भय को समाप्त करदे | भय-मुक्त जीवन ही उन्मुक्त-जीवन है |भयरहित जीवन ही वास्तविक जीवन है |
                                             || हरिः शरणम् || 

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