रसखान कृष्ण प्रेम में इतने खोये रहते थे कि उन्होंने अपना निवास ही ब्रज को बना लिया था |रसखान ने जितना अच्छा चित्रण कृष्ण की गोपिकाओं के साथ रासलीला का किया है उतना सुन्दर वर्णन शायद ही किसी अन्य कवि ने किया होगा |रसखान की यह चाह जगजाहिर थी कि वे इस ब्रज भूमि पर ही बार बार जन्म लेना चाहते थे |उनकी इस इच्छा का एक मात्र कारण यही था कि वे सदैव श्री कृष्ण का सानिध्य चाहते थे |उन जैसा कृष्ण प्रेम शायद ही कहीं देखने को मिलता है |प्रेम के बारे में उनकी सोच उच्चतम थी |प्रेम के सम्बन्ध में वे कहते हैं
प्रेम अगम अनुपम अमित,सागर सरिस बखान |
जो आवत एही ढिग बहुरि,जातनाहि रसखान ||
प्रेम अगम है |प्रेम अनुपम है |प्रेम अमित है |प्रेम अगम है-का अर्थ है कि प्रेम करने का कोई आधार नहीं होता और न ही प्रेम पैदा होने के बाद वापिस कभी जा सकता है |अगर आप किसी से प्रेम करते है और आप से कोई पूछे कि आप उसे किस आधार पर प्रेम करते हैं ?जवाब में अगर आप प्रेम करने का कोई आधार बताते हैं तो इसका एक ही अर्थ है कि आप प्रेम नहीं किसी और की बात कर रहे है |प्रेम तो बस प्रेम होता है,उसका कोई आधार नहीं होता जिसके कारण प्रेम किया जा रहा हो |एक बार प्रेम पैदा होने के बाद उसे निकाल बाहर करना मुश्किल होता है |इसीलिए रसखान कहते हैं कि प्रेम अगम है |
प्रेम अनुपम है -यानि प्रेम की तुलना किसी अन्य से हो ही नहीं सकती |प्रेम अतुलनीय होता है |प्रेम आपको भीतर तक ,सदैव के लिए भिगो देता है |प्रेम अमित है यानि प्रेम बंधन मुक्त है |प्रेम को न तो किसी सीमा में बांधा जा सकता और न ही समय और स्थान में |"प्रेम अगम अनुपम अमित,सागर सरिस बखान "-प्रेम सागर के समान एक गहराई लिए हुए होता है |प्रेम की गहराई मापना उतना ही मुश्किल है जितना समुद्र की गहराई मापना |प्रेम सदैव के लिए ,सागर सी गहराई लिए,बंधनमुक्त और अतुलनीय होता है |
"जो आवत एही ढिग बहुरि,जातनाहि रसखान"-जो प्रेम को एक बार उपलब्ध हो जाता है ,उसका वापिस पूर्वावस्था में लौट जाना संभव नहीं है |आज प्रेम है और कल नहीं रहेगा ,ऐसा कहना गलत है |ऐसा तो आसक्ति के होने पर ही हो सकता है,प्रेम के साथ नहीं |रसखान ने प्रेम को परमात्मा के साथ जोड़ते हुए कहा है कि-
हरी के सब आधीन है,हरि प्रेम आधीन ||
याही ते हरि आपु ही,याहि बड़प्पन दीन ||
इस ब्रह्माण्ड में जितना कुछ दृश्यमान है और जितना सब अदृश्य है ,समस्त यहाँ परमात्मा के अधीन है |इतना सब कुछ होते हुए भी परमात्मा स्वयं प्रेम के अधीन है |अर्थात यहाँ इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब उस परमात्मा की इच्छा अनुरूप होता है |परन्तु परमात्मा को अपने वश में केवल मात्र प्रेम के द्वारा ही किया जा सकता है |स्वयं परमात्मा कहते भी है कि मैं प्रेम के वश में हूँ |इसीलिए रसखान कहते हैं कि प्रेम को यह ऊँचा स्थान ,यह बडप्पन परमात्मा ने ही दिया है |जितने भी भक्त इस संसार में हुए हैं उन्होंने ज्ञान की बजाय प्रेम-पथ पर चलकर ही सत्य को प्राप्त किया है |परमात्मा ही वह सत्य है |
|| हरिः शरणम् ||
प्रेम अगम अनुपम अमित,सागर सरिस बखान |
जो आवत एही ढिग बहुरि,जातनाहि रसखान ||
प्रेम अगम है |प्रेम अनुपम है |प्रेम अमित है |प्रेम अगम है-का अर्थ है कि प्रेम करने का कोई आधार नहीं होता और न ही प्रेम पैदा होने के बाद वापिस कभी जा सकता है |अगर आप किसी से प्रेम करते है और आप से कोई पूछे कि आप उसे किस आधार पर प्रेम करते हैं ?जवाब में अगर आप प्रेम करने का कोई आधार बताते हैं तो इसका एक ही अर्थ है कि आप प्रेम नहीं किसी और की बात कर रहे है |प्रेम तो बस प्रेम होता है,उसका कोई आधार नहीं होता जिसके कारण प्रेम किया जा रहा हो |एक बार प्रेम पैदा होने के बाद उसे निकाल बाहर करना मुश्किल होता है |इसीलिए रसखान कहते हैं कि प्रेम अगम है |
प्रेम अनुपम है -यानि प्रेम की तुलना किसी अन्य से हो ही नहीं सकती |प्रेम अतुलनीय होता है |प्रेम आपको भीतर तक ,सदैव के लिए भिगो देता है |प्रेम अमित है यानि प्रेम बंधन मुक्त है |प्रेम को न तो किसी सीमा में बांधा जा सकता और न ही समय और स्थान में |"प्रेम अगम अनुपम अमित,सागर सरिस बखान "-प्रेम सागर के समान एक गहराई लिए हुए होता है |प्रेम की गहराई मापना उतना ही मुश्किल है जितना समुद्र की गहराई मापना |प्रेम सदैव के लिए ,सागर सी गहराई लिए,बंधनमुक्त और अतुलनीय होता है |
"जो आवत एही ढिग बहुरि,जातनाहि रसखान"-जो प्रेम को एक बार उपलब्ध हो जाता है ,उसका वापिस पूर्वावस्था में लौट जाना संभव नहीं है |आज प्रेम है और कल नहीं रहेगा ,ऐसा कहना गलत है |ऐसा तो आसक्ति के होने पर ही हो सकता है,प्रेम के साथ नहीं |रसखान ने प्रेम को परमात्मा के साथ जोड़ते हुए कहा है कि-
हरी के सब आधीन है,हरि प्रेम आधीन ||
याही ते हरि आपु ही,याहि बड़प्पन दीन ||
इस ब्रह्माण्ड में जितना कुछ दृश्यमान है और जितना सब अदृश्य है ,समस्त यहाँ परमात्मा के अधीन है |इतना सब कुछ होते हुए भी परमात्मा स्वयं प्रेम के अधीन है |अर्थात यहाँ इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब उस परमात्मा की इच्छा अनुरूप होता है |परन्तु परमात्मा को अपने वश में केवल मात्र प्रेम के द्वारा ही किया जा सकता है |स्वयं परमात्मा कहते भी है कि मैं प्रेम के वश में हूँ |इसीलिए रसखान कहते हैं कि प्रेम को यह ऊँचा स्थान ,यह बडप्पन परमात्मा ने ही दिया है |जितने भी भक्त इस संसार में हुए हैं उन्होंने ज्ञान की बजाय प्रेम-पथ पर चलकर ही सत्य को प्राप्त किया है |परमात्मा ही वह सत्य है |
|| हरिः शरणम् ||
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