Monday, February 3, 2014

अमृत-धारा |रहीम-४

                                                    रहीम और कबीर -भक्ति युग के ये दो नाम ही ऐसे है जिन्होंने परमात्मा की प्रार्थना के लिए किये जा रहे ढकोसलों को प्रमुखता से उठाया है |लोगों को इनके बारे में बताते हुए आगाह भी किया है |संसार में रहते हुए माया और मोह में रहते  हुए परमात्मा को प्राप्त करना -दोनों एक साथ होना मुश्किल है |या तो आपको मोह माया को त्यागना पड़ेगा या फिर परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयास छोडना होगा |रहीम ने इस सम्बन्ध में कहा है कि-
                           अब रहीम मुश्किल पड़ी,गाढे दोऊ काम |
                           साँचे से तो जग नहीं,झूठे से नहीं राम ||
                                                   परमात्मा ही सनातन है ,सत्य है |संसार असत है |परमात्मा सदैव और समान है |संसार परिवर्तनशील है |आप एक समय में सत् और असत दोनों को कैसे उपलब्ध हो सकते हैं ?अगर आप सत् चाहते हैं तो असत को त्यागना होगा और अगर आपका आकर्षण असत में है तो फिर सत् को भूलना होगा |रहीम यहाँ यही कह रहे हैं कि मनुष्य के सामने यह कितनी बड़ी परेशानी आ खड़ी हुई  है कि दोनों काम कैसे संभव हो ?वह सांसारिक मोह में रहते हुए परमात्मा को पाना चाहता है | अगर सत्य के साथ चले तो संसार उससे दूर हो चलेगा और अगर असत्य का साथ दे तो फिर परमात्मा से मिलन संभव नहीं है |यही मनुष्य के सामने सदैव दुविधा रही है |किसी एक रास्ते पर चलने की उधेडबुन में उसका पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है |वह ताउम्र तय ही नहीं कर पाता कि उसे दोनों में से एक किसे चुनना चाहिए |यहाँ रहीम  उसे कोई भी रास्ता नहीं दिखा रहे है,बल्कि उसकी दुविधा को उसे बता रहे है |
                                दुविधा को स्पष्ट करने के बाद रहीम कहते हैं-
                       तासों ही कछु पाइए,कीजे जाँकी आस |
                           रीते सरवर गये,कैसे बुझे प्यास ?
                    रहीम अब दुविधा में फंसे व्यक्ति को रास्ता दिखाने का प्रयास करते हैं |वे कहते हैं कि "तासों ही कछु पाइए,कीजे जांकी आस "जिसकी आप आशा कर रहे हो,मनुष्य की आशा है परमात्मा को पाना ,जिसकी तुम आशा कर रहे हो वही तुमको कुछ दे सकता है |यहाँ आपको जो कुछ भी मिल रहा है वह सब उस परम पिता परमात्मा का ही दिया हुआ है |रहीम यहाँ कहते हैं कि जिसको तुम चाहते हो वही तुम्हे दे सकता है |लेकिन तुम इस संसार में आकर,संसार से ही कुछ प्राप्त करने की आशा कर रहे हो |संसार तो एक रीता तालाब है ,उसमे पानी का अभाव है ,फिर भी आप उससे पानी चाहते है |ऐसे में वह सरोवर आपकी प्यास कैसे बुझा सकता है ?यहाँ प्यास आपकी कामनाएं है और संसार एक सरोवर है |संसार ने क्या किसी की कामनाये,इच्छाए कभी भी पूरी की है?नहीं,कभी भी किसी की कामनाएं पूरी हुई है और न ही कभी पूरी हो सकती है |मनुष्य यह सब भलीभांति जानता भी है ,फिर भी वह संसार से ही कुछ पाने की कामना करता है |लेकिन एक बार जब वह परमात्मा की आशा करता है तब समस्त कामनाएं समाप्त हो जाती है ,और उसे जो प्राप्त होता है वह केवल वही जान सकता है जिसने उसे प्राप्त किया है |रहीम इस बात को अपने काव्य के माध्यम से इस प्रकार कहते हैं -
                          रहिमन बात अगम्य की,कहनि सुननि की नाहीं |
                          जे जानति ते कहति नहीं,कहत ते जानति नाहीं ||
               "रहिमन बात अगम्य की"-अगम्य उसे कहते हैं जो गमन नहीं करता हो अर्थात चलायमान नहीं हो ,सनातन और प्रत्येक स्थान पर हो ,सर्वत्र हो ,परिवर्तनशील न हो |परमात्मा ही अगम्य है |रहीम कहते हैं कि परमात्मा की बात कोई कहने और सुनने की नहीं है ,क्योंकि जो परमात्मा को जान चूका है ,उसके पास तो उसे बताने के लिए शब्द नहीं है,वे परमात्मा को जानकर मौन हो जाते हैं |और जो परमात्मा को जानते ही नहीं है ,वे पूरे संसार को उसके बारे में बतलाते घूम रहे हैं |आज के सन्दर्भ में यह बात एकदम से सही प्रतीत हो रही है |कबीर ने परमात्मा को जान जाने और फिर उससे प्राप्त आनंद को सबको बता न पाने को "गूंगा केरी शर्करा "कहा है |गूंगा शक्कर खाकर भी उसकी मधुरता को बतला नहीं सकता |
                 रहीम संसार को असत कहते है और परमात्मा को सत् |दोनों एक साथ प्राप्त नहीं किये जा सकते |दोनों में से किसी एक को चुनना होगा |परमात्मा को ,सत् को चुनना ही सही चुनाव है |जब आपका चुनाव सत् के पक्ष में हो जाता है,तो फिर आप परमात्मा के अतिनिकट हो जाते हो |ऐसे में परमात्मा आप से दूर कैसे रह सकते है ?और एक बार जब आपको परमात्मा की आहट महसूस होती है तो फिर उसे व्यक्त करने के लिए आपके पास शब्द ही नहीं होते |यही आध्यात्मिकता की उच्चत्तम अवस्था है |
                                             || हरिः शरणम् ||

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