Sunday, February 2, 2014

अमृत-धारा |रसखान-२

                                             गीता में भगवान श्री कृष्ण ने परमात्मा की प्राप्ति के लिए जो मार्ग बताएं है उनमे एक मार्ग ज्ञान का है |ज्ञान ,परमात्मा को जानने का ही दूसरा नाम है |ज्ञान सबसे अच्छा रास्ता है क्योंकि इसमें परमात्मा को सम्पूर्ण रूप से जान लेने के कारण उससे सम्बंधित सभी भ्रांतियां दूर हो जाती है |परन्तु इस मार्ग की सबसे बड़ी कमी यह है कि ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद व्यक्ति अहंकार ग्रस्त हो सकता है |कोई बिडला ही ऐसा होगा जो ज्ञान प्राप्त कर के भी अहंकार से मुक्त हो |
                                             ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी अहंकार न आने पाये,यह केवल तभी संभव है जब आप प्रेमपूर्ण हो |प्रेम और अहंकार दोनों एक दूसरे के विपरीत है |जहाँ प्रेम है वहाँ अहंकार और घमंड का कोई स्थान नहीं है |हो सकता है कि बिना प्रेम पूर्णता के आप ज्ञान से सत्य को प्राप्त कर ले परन्तु जो आनंद प्रेम के साथ सत्य को पाने में है वह अकेले ज्ञान से सत्य पाने में नहीं है |इसलिए जितने भी संत महापुरुष हुए हैं वे सब ज्ञान के साथ साथ प्रेम से भी परिपूर्ण थे |इसी लिए उनके ह्रदय से काव्य प्रस्फुटित हुआ है |
                                              रसखान ने इसी ज्ञान और प्रेम के बारे में कहा है-
                                    भले वृथा करि पचि मरौ,ज्ञान गरूर बढ़ाय |
                                    बिना प्रेम फीको सबै,कोटिन कियो उपाय ||
                          आप चाहे कितना ही प्रयास करलें,आपके सब प्रयास व्यर्थ हो जायेंगे अगर आप केवल अपना ज्ञान ही बढ़ा रहे है और आपके भीतर प्रेम नहीं है |बिना प्रेम के ज्ञान केवल आपका भार ही बढ़ाएगा |अहंकार आपके जीवन का सबसे बड़ा बोझ है |और जब आप बोझिल होते हैं तब आपके भीतर परमात्मा का प्रवेश कैसे संभव है ?बिना प्रेम के सारा संसार ही फीका है |आप करोड़ों उपाय करलें,आप बिना प्रेम के स्वयं में मधुरता नहीं ला सकते|रसखान आगे कहते हैं-
                                   कमलतंतु सो छीन अरु,कठिन खड़ग की धार |
                                    अति सूधो टेढो बहुरि,प्रेम पंथ अनिवार ||
                            ज्ञान-मार्ग के साथ प्रेम -मार्ग का संगम आपको परमात्मा की सुखद अनुभूति करता है |यह प्रेम का रास्ता कमल की डंडी के रेशे जितना सूक्ष्म है |कमल पुष्प की डंडी कई सूक्ष्म तंतुओं से बनी होती है |उसका प्रत्येक तंतु बहुत ही महीन होता है |रसखान कहते है कि प्रेम मार्ग इतना ही सूक्ष्म और संकडा व तंग है |प्रेम के रास्ते पर चलना ऐसे ही है जैसे तलवार की तेज धार पर चलना हो |संकडे और तेज धार वाले मार्ग पर चलना संसार में सबसे कठिन कार्य है |यह प्रेम का रास्ता सीधा भी है और टेढा भी |सीधा उनके लिए जो प्रेम में मिट जाते हैं और टेढा उनके लिए जो स्वयं को मिटा नहीं पाते |रसखान कहते हैं कि इस प्रेम के मार्ग पर सोच समझ कर चलना पड़ता है |और बिना प्रेम के सब कुछ फीका है |प्रेम ही आपके जीवन को मधुरता प्रदान कर सकता है |बिना प्रेम यह जीवन शुष्क मरुस्थल जैसा है और प्रेम के साथ अत्यंत ही मधुर |
                                           || हरिः शरणम् ||

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