Wednesday, February 19, 2014

सत्य या भ्रम |

                                              एक बार एक कक्षा में एक शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे थे |उन्होंने बच्चों से एक प्रश्न किया | बोले -"बच्चों,क्या तुममे से कोई बता सकता है कि वास्तविकता और भ्रम में क्या अंतर है ?" सभी विद्यार्थी एक दम शांत ,जैसे कि किसी को कुछ भी पता नहीं हो | जैसा कि प्रायः होता ही है कि प्रत्येक कक्षा में दो-चार शरारती विद्यार्थी भी हुआ करते हैं |हमारे समय में भी ऐसा होता था |ये ऐसे विद्यार्थी होते हैं जो संकट के समय बड़े काम आते हैं ,और समस्त विद्यार्थियों को ऐसे आसन्न संकट से उबार लेते हैं | ऐसा ही इस कक्षा में भी हुआ |एक विद्यार्थी अचानक अपने स्थान से खड़ा हुआ और शिक्षक से बोला-"मास्टरजी ,आप इस कक्षा में हम सबको पढ़ा रहे हैं,यह सत्य है,एक वास्तविकता है |आप जो भी पढ़ा रहे हैं वह हम सब समझ भी रहे है ,यह आपका भ्रम है |"
                                          यह उत्तर सुनकर शिक्षक ने क्या कहा होगा उस विद्यार्थी से ,यह तो इस चुटकुले में आगे वर्णित नहीं है | परन्तु चाहे यह एक जोक ही हो,परन्तु उस शरारती बच्चे ने वास्तविकता और भ्रम के बीच का अंतर काफी हद तक स्पष्ट कर दिया है |आप अपने जीवन में कितने बड़े भ्रम पाले हुए हैं ,यह तो आप स्वयं ही नहीं जानते |इन भ्रम से आप अपने आप को अलग कर वास्तविकता में जाना भी तो नहीं चाहते |यह भ्रम आपको अपनी मज़बूत पकड़ से इतना ज्यादा जकड लेता है कि कई बार तो आप इस भ्रम को ही जीवन की वास्तविकता समझ बैठते हैं |
                            बच्चे भगवान के ही रूप होते हैं ,और इसलिए वे कई बार अनायास ही अपने बालपन से आपके भ्रम को तोड़ डालते है |पर हम अपने चारों और एक ऐसा आवरण बना लेते हैं कि इतना सब कुछ समझने के बाद भी इस भ्रमजाल से निकल नहीं पाते है |बहुत पहले एक साप्ताहिक पत्रिका आया करती थी-धर्मयुग |आजकल प्रकाशित होती है या नहीं-मुझे इसका ज्ञान नहीं | उसके अंतिम पृष्ठ पर प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट प्राण शर्मा  का एक कार्टून प्रकाशित हुआ करता था -"कार्टून कोना-ढब्बूजी" |यह वही कार्टूनिस्ट श्री प्राण शर्मा है जिसका "चाचा चौधरी "कार्टून कथा बहुत ही प्रसिद्ध है | धर्मयुग में "ढब्बूजी" पर एक कार्टून छपा था |यह  कार्टून  लगभग इसी भ्रम को तोडता हुआ प्रतीत होता है |  वह कार्टून आज भी मुझे याद है |इस कार्टून में ढब्बूजी का बेटा अपना स्कूल का गृह कार्य कर रहा होता है और ढब्बूजी अपने बच्चे को कह रहे हैं कि बेटे ,क्या मैं तुम्हे गणित के सवाल हल करने में तुम्हारी मदद करूँ ? उनका बेटा उनकी तरफ देखे बिना ही ढब्बूजी को कहता है कि नहीं पिताजी ,मैं सब सवाल अपने आप ही गलत हल कर लूँगा |यहाँ भ्रम होता है ढब्बूजी को,अपनी गणित के ज्ञान बारे में और उनका बेटा एक ही झटके में उनके इस भ्रम को तोड़ देता है |हो सकता है कि उसके पिताजी ने कभी एक सवाल गलत हल कर दिया हो और स्कूल में बच्चे को शिक्षक ने कुछ कहा हो,यह सब हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं |प्राण साहब तो कार्टून बनाकर हमें हँसा चुके है और इस कार्टून के माध्यम से एक सन्देश भी दिया है |
                         क्या हम सब इस संसार में ढब्बूजी की तरह  ही नहीं है,जो समझ रहे हैं कि हमें सब कुछ का ज्ञान है ?ज्ञान एक अथाह समुद्र के समान है,उसमे मात्र डुबकी लगाने से कुछ भी नहीं होगा |आवश्यकता है कि इस ज्ञान समुद्र में डुबकी लगाकर मोती ही अपनी मुट्ठी में भरकर बाहर निकले,तल की मिट्टी नहीं |किंनारे पर बैठ कर मुट्ठी खोलें और देखें कि ज्ञान से हाथ क्या लगा-मिट्टी या मोती | ग़लतफ़हमी या वास्तविकता ,असत् या सत् , भ्रम या सत्य |  
                            || हरिः शरणम् ||

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