पहले "मेरा" गया,
फिर "तेरा" गया'
फिर "मैं" गया,
फिर "तूं" गया,
इस तरह धीरे धीरे सब गया,
"सब कुछ " खोया,
एक दिन ऐसा आया कि
"क्या खोया" ,उसको भी खो दिया |
उस दिन भीतर से एक आवाज़ आई-
"खोया"ही खोया तो फिर "पाया" क्या ?
...........जब "मैं" नहीं ,
"तूं" भी नहीं,
"मेरा" भी नहीं,
"तेरा" भी नहीं,
फिर कौन उत्तर दे,
किसको उत्तर दे और
क्यों उत्तर दे ?
कि सब कुछ खोकर
आखिर "पाया" क्या ?
क्योंकि......
जिसको पाया ,
खुद ही मूक है |
"गूंगा केरी सरकरा.........."
प्रेम! शांति!! आनन्द!!!
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|| हरिः शरणम् ||
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