Wednesday, February 26, 2014

भय का कारण |

                                             चाहे कोई कितना ही प्रयास करले भय से मुक्त होना आसान नहीं है |जब तक भय से मुक्त नहीं हो पाओगे तब तक भ्रम-जाल से निकल नहीं पाओगे|भ्रम-जाल में केवल छटपटाहट ही है,आनंद कहीं नहीं |आनंद तो भ्रम-जाल से मुक्त होने पर ही उपलब्ध होता है |जिस किसी को भी आप कहेंगे कि आपको भय है ,आप डरते हैं ,तब वह व्यक्ति अपने आप को बहादुर दिखाने का प्रयास करेगा |वास्तविकता में वह बहादुर होता नहीं है बल्कि बहादुर होने का उसे भ्रम ही होता है |जो भी अपने आपको बहादुर और भय-मुक्त प्रदर्शित करता है ,समझ लो वह वास्तव में सबसे ज्यादा भय ग्रस्त है |वह इस बहादुरी का भी भयवश एक भ्रम पाले हुए है अन्यथा बहादुरी  प्रदर्शित करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है |
                                                अब हम जानने का प्रयास करेंगे कि भय मन से निकलने के स्थान पर दिन प्रतिदिन बढता ही क्यों जाता है ?भय का कारण क्या है,उसका भोजन क्या है, जो उसका निरंतर पोषण करता रहता है ?इस संसार में शिशु जब जन्म लेता है,तब वह भयरहित होता है |उसे किसी भी बात का भय नहीं सताता है |फिर बड़ा होकर वह इतना भयग्रस्त क्यों हो जाता है?जीवन के प्रारंभ से ही हम बच्चे को भयग्रस्त करना शुरू कर देते है |प्रारम्भ हम करते है अँधेरे के भय से,भूत के भय से |जबकि हम सभी जानते हैं की अँधेरे से भय किस काम का |और भूत का.....किसने देखा है आज तक उसे ?जिसने भी देखा है या देखने का दावा करता है क्या उसने किसी को भूत दिखाया भी है?अगर नहीं तो फिर भूत के अस्तित्व को स्वीकार भी किस आधार पर किया जाये |परन्तु इनके भय से बच्चे में भय का और भ्रम का बीजारोपण अवश्य हो जाता है |बड़ा होने पर वह इनसे भय खाना तो बंद कर सकता है,परन्तु एक बार जो उसके मन में भय का बीजारोपण जो हो गया है वह ताउम्र कभी भी खत्म नहीं होगा |
                              अब युवावस्था आते आते कुछ खोने का भय उसमे स्थान बना लेता है |और उस भय का पोषण करती है मन में पैदा होने वाली कामनाएं और इच्छाएं|अगर कुछ कामनाएं पूरी हो भी गई तो उनके खोने का भय सताता है |बेटा हो गया तो उसके अस्वस्थ हो जाने का भय,अच्छी बहु मिल गई तो बेटे के खो जाने का भय,पैसा कमा लिया तो उसके खो जाने का भय ,अगर आर्थिक रूप से सबल हो गए तो उस स्थान पर बने रहने का भय .....और अंत में सब कुछ पा लिया तो मर जाने पर इन सबके खो जाने का भय |इस प्रकार उसकी ये सब कामनाएं उसमे अपने प्रति एक मोह पैदा करदेती है |यह मोह ही भय का सबसे बड़ा कारण है |
                                       समस्त भय और भ्रम के मूल में यह मोह ही होता है,यह चाह ही होती है |चाह और मोह भी एक दूसरे के पूरक हैं |चाह पूरी हुई तो प्राप्त फल के साथ मोह और अगर चाह पूरी न हुई तो उस चाह का मोह |भय चाह पूरी न होने का या फिर चाह के उपरांत मिले फल के साथ मोह पैदा हो जाने से उस फल के खो जाने का भय |इस तरह यह चाह,मोह,भय ,भ्रम और फिर से एक नई चाह -इस तरह  कभी भी न टूटने वाला चक्र बन जाता है |यही भ्रम-जाल है |
                                  इस प्रकार हमने जाना कि भय का मूल कारण संसार से उत्पन्न चाह और संसार के प्रति मोह होना ही है |जिस दिन व्यक्ति के मन से समस्त चाह, इच्छाएं, अपेक्षाएं और कामनाएं नष्ट हो जायेगी तब मोह भी समाप्त हो जायेगा,भय भी समाप्त हो जायेगा और इनसे पैदा हुआ भ्रम भी |
                       || हरिः शरणम् || 

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