Thursday, February 6, 2014

अमृत-धारा |बिहारी -१

                                     बिहारी,काव्य जगत का एक ऐसा नाम जिसे कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकेगा |जिस समय बिहारी का इस संसार में आगमन हुआ और अपना जीवन जिया , उस समय को  रीति-काल कहा जाता है |बिहारी का जन्म ग्वालियर ,बुंदेलखंड में हुआ था,बाद में  वे मथुरा ,अपनी ससुराल जाकर बस गए थे | बिहारी ने ७१३ दोहों से "सतसई " नामक एक ग्रन्थ की रचना की थी |जिसके बारे में किसी ने सच ही कहा है कि-
                           सतसईया के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर |
                           देखन   में  छोटे   लगे , घाव करे गंभीर ||
               वे राज घराने जयपुर के राज कवि रहे हैं |उस वक्त जयपुर में सवाई जय सिंह का शासन था ,जो शाहजहाँ के अधीन थे |राजा जय सिंह अपनी शादी के बाद नई रानी के साथ अतिव्यस्त हो गए थे ,तब बिहारी ने उनको आगाह करने के लिए एक दोहा कहा था-
                                नहिं पराग नहिं  मधुर मधु,नहिं विकास यहि काल |
                                  अली कली में ही बिंध्यो ,आगे कौन हवाल ||
                   बिहारी , राजा जय सिंह को समझाते हुए कह रहे हैं कि रानी रत रहने का कोई कारण नहीं है|न तो इनमे पराग है,न ही यह कोई मीठा मधु यानि शहद है और रानी में मगन रहना न ही कोई विकास का काम  है |यह तो मात्र एक काल है |हे अली अर्थात हे भँवरे (राजा को संबोधन )तूं इस कली के साथ रहकर क्यों बिंधा जा रहा है अर्थात केवल रानी में ही क्यूँ इतना रत है ,इससे ज्यादा मैं क्या कहूँ?भंवरे और कली के उदाहरण से अधिक अच्छा क्या उदाहरण दूँ-"आगे कौन हवाल" अर्थात तुमसे अधिक इस राज्य का कौन रक्षक हो सकता है ?|भंवरा कली के मोह में आकर काँटों से बिंध जाता है क्योंकि फूल में पराग भी होता है और शहद भी |पराग और शहद पाने की कामना ,भंवरे को फूल की तरफ आकर्षित करती है|फूल के चारों और कांटे होते है जिनके कारण भंवरे का शरीर बिंध जाता है |बिहारी ने जय सिंह को यही समझाया कि रानी में न तो पराग है और न ही मीठा शहद |केवल रानी के पास रहकर तूं अपने आपको घायल क्यों कर रहा है?आप एक अच्छे योद्धा हो,रानी के पास रहते हुए घायल होने से अच्छा है कि युद्ध मैदान में वीरता के साथ लड़ते हुए घायल हों |उस समय शाहजहाँ ने बिना जय सिंह को साथ लिए बखल पर आक्रमण किया था परन्तु वहाँ पर वह और उसकी सेना फंस गयी |राजा जय सिंह को बुलाने के लिए उसने सन्देश भेजा था |उस समय राजा से डरते हुए किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि शाहजहाँ का यह सन्देश उन्हें पहुंचा दे क्योंकि राजा जय सिंह अपनी रानी में मस्त था |तब बिहारी ने ही उन्हें उपरोक्त दोहे के माध्यम से समझाया था |राजा जयसिंह सब बात तुरंत समझ गए और सेना लेकर बखल के लिए प्रस्थान कर गए |वहाँ वीरता से लड़कर शाहजहाँ और उसकी सेना को सुरक्षित निकल लाए |
                                    यही है बिहारी की खासियत |रीति-काल के कवि उस समय की व्यवस्था को देखकर अपनी काव्य रचना के माध्यम से संकेत देते थे |विवेकशील मनुष्य तुरंत ही उसका अर्थ समझ जाते थे और फिर उसी अनुरूप कार्य करते थे |इन रचनाओं में किसी भी प्रकार का कटाक्ष नहीं हुआ करता था,जिससे न तो कहने वाले और न ही समझने वाले को बुरा लगता था |एक आदर्श कविता और कवि की यही पहचान होती है |
                                  || हरिः शरणम् ||

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