Tuesday, February 28, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 55

गुण-कर्म विज्ञान – 55  
             तीसरे प्रकार का गुणों का स्थानान्तरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होता है और यह स्थानान्तरण प्रायः तात्कालिक ही होता है | इस प्रकार का स्थानान्तरण दो प्रकार का होता है – पहले प्रकार के स्थानान्तरण में गुरु से शिष्य को तथा सत्संग में वक्ता से श्रोता को होता है | इस प्रकार के गुणों के स्थानान्तरण में देह परिवर्तन नहीं होता है बल्कि केवल गुणों का ही स्थानान्तरण होता है | यह ठीक वैसे ही होता है जैसे किसी चुम्बक की निकटता से एक लोहे के टुकड़े अथवा लोहे की वस्तु में चुम्बक के गुण आ जाते हैं | इसी श्रेणी के दूसरे प्रकार के स्थानान्तरण में गुणों के स्थानान्तरण के साथ-साथ देह परिवर्तन भी होता है | ऐसे स्थानान्तरण को परकाया प्रवेश कहा जाता है | इस स्थानान्तरण की प्रक्रिया में एक व्यक्ति अपना शरीर त्यागकर गुणों और आत्मा के साथ तत्काल ही अपने समक्ष उपलब्ध किसी भी सुयोग्य निश्चेतन हुए अन्य भौतिक शरीर में प्रवेश कर लेता है | यह गुणों के स्थानान्तरण का सर्वोच्च प्रकार है | आदिकाल में ऋषि-मुनियों की जो सहस्रों वर्षों की आयु हुआ करती थी, उसका आधार परकाया प्रवेश ही होता था | आज भी बद्रीनाथ के पास स्थित नर पहाड़ की गुफा में ऐसे ही दीर्घायु प्राप्त एक बाबा निवास कर रहे हैं | कहा जाता है कि इन बाबाजी के पास परकाया प्रवेश की विधा है |
            परमात्मा के मार्ग पर अग्रसर हुए प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी परकाया प्रवेश जैसी अनेकों उपलब्धियां आती हैं परन्तु जो व्यक्ति ऐसी किसी भी उपलब्धि के प्रति मोहग्रस्त हो जाता है, उसका परमात्मा को उपलब्ध होना लगभग असंभव हो जाता है | वह परकाया प्रवेश को तो संभव बना सकता है परन्तु मोक्ष अथवा मुक्ति से उसकी दूरी बढ़ती जाती है | अतः आवश्यक है कि ऐसी विधाओं में न उलझकर उनका उल्लंघन किया जाये |
            इस प्रकार हमने गुण और कर्मों का शास्त्रों और आधुनिक विज्ञान का तुलनात्मक विवेचन किया | समयाभाव के कारण इस श्रृंखला में मैंने अपने अध्ययन के कुछ मुख्य अंशों को ही आपके समक्ष प्रस्तुत किया है, जिससे आपकी गुण, कर्म, कर्ता और आत्मा से सम्बन्धित कई भ्रांतियां टूट सके | आपको यह श्रृंखला कैसी लगी, इस पर आपकी प्रतिक्रिया अवश्य चाहूँगा, जो मेरा मार्गदर्शन करेगी | श्रृंखला लम्बी खिंच गयी थी, अतः मुख्य विषय को अल्प शब्दों में प्रस्तुत करने की दृष्टि से इस श्रृंखला का समापन सार-संक्षेप के साथ कल होगा |   

प्रस्तुति - डॉ.प्रकाश काछवाल |
|| हरिः शरणम् ||

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