Tuesday, February 7, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 34

गुण-कर्म विज्ञान – 34
स्वतः स्फूर्त कर्म (Self-motivated or automatic acts ) –
          स्वतः स्फूर्त कर्म वे कर्म होते हैं, जिनको विज्ञान केवल रासायनिक क्रियाएं (Chemical reactions) मात्र मानता है | इन क्रियाओं में शरीर में स्थित रासायनिक गुण आपस में क्रियाएं करते हुए कर्म संपन्न करते हैं | उदाहरण स्वरूप भोजन को ग्रहण कर उसके पाचन (Digestion) होने को ही लेते हैं | भोजन को मुंह में रखते ही लार (Saliva) नामक रसायन का स्राव प्रारम्भ हो जाता है, जो भोजन को पतला और उसमें उपस्थित शर्करा का कुछ सीमा तक पाचन कर देता है | यह अर्ध पचा (Semi digested) भोजन जब आमाशय (Stomach) में पहुंचता है, तब उसका आगे और पाचन होता है | उसके बाद छोटी आंत में पहुँचने पर पित्त (Bile) और अग्नाशय (Pancreas) के स्राव आकर उस भोजन को पूर्णरूप से पचा डालते हैं | इस प्रकार भोजन के पाचन के लिए ऐसी क्रिया सतत चलती रहती है | ऐसे किसी भी कर्म को स्वतः स्फूर्त कर्म (Automatic act) की श्रेणी में रखा जाता है, जिसका भान (Feeling) मनुष्य को नहीं हो |
         ऐसा तभी तक माना जाता है, जब व्यक्ति नियमित रूप से साधारण भोजन प्राप्त करता हो | जब भोजन सुपाच्य (Easy digestible) न होकर गरिष्ठ (Heavy) प्रकार का किया जाता है तब इन पाचन करने वाले विभिन्न स्राव के रासायनिक गुण परिवर्तित हो जाते हैं और मनुष्य बीमार (Diseased) हो जाता है | इसी प्रकार विपरीत परिस्थितियों में अगर भोजन न कर भूखा रहा जाये तो भी इन स्राव (Secretions) के रासायनिक गुण परिवर्तित होकर रोग के जनक बनते हैं | विज्ञान, इस क्रिया का मनुष्य के भावी जन्म पर क्या प्रभाव पड़ता है, नहीं जानता | वह केवल इस जन्म में उसके शरीर पर इस पाचन की क्रिया से पड़ने वाले प्रभाव को ही जानता है |
          ऐसे ही अन्य सभी कर्म जिसको करने वाले व्यक्ति को उस कर्म का ज्ञान नहीं रहता है कि वह कोई कर्म कर रहा है, वैसे सभी कर्म भी स्वतः स्फूर्त कर्म कहलाते हैं | इसके अंतर्गत श्वसन क्रिया (Respiration) और ह्रदय का निरंतर कार्य करना (Heart beating and circulation of blood) आदि क्रियाएं भी आ जाती है | मनुष्य की भोजन करने और उसके पाचन की क्रिया को केवल एक उदाहरण देने के लिए वर्णित किया है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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