Sunday, February 5, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 32

 गुण-कर्म विज्ञान – 32                          
                हमारे शास्त्र आज के विज्ञान से बहुत आगे जाकर इन कर्मों (Actions) का सम्पूर्ण रूप से विश्लेषण (Analysis) कर पुनर्जन्म में कर्मों की भूमिका को स्वीकार करते हुए स्पष्ट करते हैं, जबकि विज्ञान पुनर्जन्म को भी स्वीकार नहीं करता है | आइये, हम भी विज्ञान को यहीं छोड़कर कुछ समय के लिए शास्त्रों के साथ चलें और समझने का प्रयास करें कि ‘कर्म’ क्या है, उसके परिणाम कैसे प्राप्त होते हैं और उन कर्मों की भूमिका पुनर्जन्म (Reincarnation) होने में कहाँ तक है और कैसे बन जाती है ?
कर्म (Actions) -
           कर्म किसे कहते हैं ? ऐसी प्रत्येक क्रिया (Activity) जिससे किसी प्रकार का कोई भी कार्य संपन्न होता है अथवा किया जा सकता है, कर्म (Action) कहलाती है | कर्म के बिना इस संसार में जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती | इस पृथ्वी ग्रह पर जो हलचल और सक्रियता दिखाई पड़ती है, सब कर्म के फलस्वरूप ही संभव हो पाई है अन्यथा अन्य ग्रहों व उपग्रहों पर केवल सूनापन ही मिलता है | अतः इस संसार-चक्र के गतिमान बने रहने में कर्म की भूमिका को महत्वपूर्ण मानने से इनकार नहीं किया जा सकता | भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं-
           प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः |
           भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् || गीता-9/8 ||
अर्थात अपनी प्रकृति को अंगीकार (Adoption) करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए सम्पूर्ण भूत समुदाय (Livings) को बार-बार उनके कर्मों (Acts) के अनुसार रचता हूँ |
        गीता का यह श्लोक स्पष्ट करता है कि स्वभाव (Characteristics)  के बल से मनुष्य परतंत्र (Dependent) होता है और मनुष्य का यह स्वभाव कर्मों (Actions) के कारण बनता है | समस्त कर्म प्रकृति के गुणों (Properties of the nature) में ही संभव हैं और उनके कारण ही होते हैं | ऐसे में स्वयं द्वारा जनित इस प्रकृति को साथ लेकर परमात्मा ही विभिन्न प्रकार के प्राणियों की रचना उन कर्मों के अनुसार करते हैं जो कर्म उसके द्वारा पूर्व मनुष्य जन्म में किये गए थे | कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म ही सदैव संसार-चक्र के केंद्र में रहते हैं और उसी के अनुरूप विभिन्न प्रकार के प्राणी अस्तित्व (Existence) ग्रहण करते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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