गुण-कर्म विज्ञान –
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कर्म संसार के सभी प्राणी करते हैं
परंतु सकाम-कर्म केवल मनुष्य के द्वारा ही किये जाने संभव है | शेष प्राणियों के कर्म
केवल कर्मफल-भोग प्राप्त करने तक ही सीमित रहते हैं | मनुष्य को चाहिए कि वह अपने
द्वारा किये गए कर्मों को संचित-कर्मों में परिवर्तित न होने दे | इसके लिए एक ही
विकल्प हैं, निरंतर अपने कर्मों में सुधार करते हुए अकर्म की अवस्था तक पहुंचा
जाये | यह कैसे अनुभव हो कि मनुष्य के कर्मों में सुधार हो रहा है अथवा नहीं ?
इसको स्पष्ट करने के लिए भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं –
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं
गुणकर्मविभागशः |
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्
|| गीता- 4/13 ||
अर्थात चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय,
वैश्य और शूद्र) की रचना
गुण कर्म-विभाग को ध्यान में रखते हुए
मैंने ही की है | इस प्रकार उस सृष्टि-रचना के कर्म का कर्ता होने पर भी
मुझ अविनाशी परमेश्वर को तू वास्तव में अकर्ता ही जान |
यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण चार वर्णों
(Characters) की बात कह रहे हैं, चार जातियों (Castes) की नहीं | आदिकाल (Ancient era) से इस
देश में वर्ण व्यवस्था (Character system) चली आ रही
थी परन्तु दुर्भाग्य वश इस सनातन संस्कृति को मिटाने के लिए मध्य युग (Middle era) में इसको जाति व्यवस्था (Caste system) में परिवर्तित कर दिया गया | इस परिवर्तन का कारण
व्यक्तिगत स्वार्थ ही मुख्य था | स्वार्थ यह था कि ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण ही
होगा चाहे उसके कर्म किसी भी अन्य वर्ण में रखने के अनुसार हो | उस काल में
ब्राह्मण सर्वत्र पूज्य माने जाते थे | अतः ब्राह्मणों के मन में यह बात आ गयी की
उसके कुल में पैदा होने वाले को भी ब्राह्मण ही माना जाये, जिससे उसके पुत्र को भी वही
मान-सम्मान मिल सके जो स्वयं उसको आज तक मिलता आया है | इसी सोच के कारण जाति व्यवस्था
अस्तित्व में आई | पुरातन काल में अगर ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक कर्म से
क्षत्रिय होता तो वह ब्राह्मण वर्ण का न होकर क्षत्रिय वर्ण का कहलाता | परशुराम
जी इसके उदाहरण है, जिन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म अवश्य लिया था परन्तु कर्म से
वे क्षत्रिय थे | ऋषि विश्वामित्र ने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था और अपने गुण और
कर्मों से वे ब्राह्मण कहलाये | यह मध्यकालीन युग की बहुत बड़ी त्रासदी रही जिसने
सब कुछ परिवर्तित कर दिया | जिसके कारण ही इस जाति-व्यवस्था के दंश का परिणाम यह
देश आज तक भुगत रहा है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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