Monday, February 13, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 40

गुण-कर्म विज्ञान – 40
           कर्म संसार के सभी प्राणी करते हैं परंतु सकाम-कर्म केवल मनुष्य के द्वारा ही किये जाने संभव है | शेष प्राणियों के कर्म केवल कर्मफल-भोग प्राप्त करने तक ही सीमित रहते हैं | मनुष्य को चाहिए कि वह अपने द्वारा किये गए कर्मों को संचित-कर्मों में परिवर्तित न होने दे | इसके लिए एक ही विकल्प हैं, निरंतर अपने कर्मों में सुधार करते हुए अकर्म की अवस्था तक पहुंचा जाये | यह कैसे अनुभव हो कि मनुष्य के कर्मों में सुधार हो रहा है अथवा नहीं ? इसको स्पष्ट करने के लिए भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं –
                चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः |
                तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् || गीता- 4/13 ||
        अर्थात चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) की रचना गुण कर्म-विभाग को ध्यान में रखते हुए  मैंने ही की है | इस प्रकार उस सृष्टि-रचना के कर्म का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी परमेश्वर को तू वास्तव में अकर्ता ही जान |
            यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण चार वर्णों (Characters) की बात कह रहे हैं, चार जातियों (Castes) की नहीं | आदिकाल (Ancient era) से इस देश में वर्ण व्यवस्था (Character system) चली आ रही थी परन्तु दुर्भाग्य वश इस सनातन संस्कृति को मिटाने के लिए मध्य युग (Middle era) में इसको जाति व्यवस्था (Caste system) में परिवर्तित कर दिया गया | इस परिवर्तन का कारण व्यक्तिगत स्वार्थ ही मुख्य था | स्वार्थ यह था कि ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण ही होगा चाहे उसके कर्म किसी भी अन्य वर्ण में रखने के अनुसार हो | उस काल में ब्राह्मण सर्वत्र पूज्य माने जाते थे | अतः ब्राह्मणों के मन में यह बात आ गयी की उसके कुल में पैदा होने वाले को भी ब्राह्मण ही माना जाये, जिससे उसके पुत्र को भी वही मान-सम्मान मिल सके जो स्वयं उसको आज तक मिलता आया है | इसी सोच के कारण जाति व्यवस्था अस्तित्व में आई | पुरातन काल में अगर ब्राह्मण के घर पैदा हुआ बालक कर्म से क्षत्रिय होता तो वह ब्राह्मण वर्ण का न होकर क्षत्रिय वर्ण का कहलाता | परशुराम जी इसके उदाहरण है, जिन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म अवश्य लिया था परन्तु कर्म से वे क्षत्रिय थे | ऋषि विश्वामित्र ने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था और अपने गुण और कर्मों से वे ब्राह्मण कहलाये | यह मध्यकालीन युग की बहुत बड़ी त्रासदी रही जिसने सब कुछ परिवर्तित कर दिया | जिसके कारण ही इस जाति-व्यवस्था के दंश का परिणाम यह देश आज तक भुगत रहा है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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