गुण-कर्म विज्ञान –
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विज्ञान कहता है कि इस शरीर में
रासायनिक गुणों के आपस में संयोग (Combination) अथवा
वियोग (Separation)
के कारण जो क्रियाएं
(Activities) होती है वे सभी रासायनिक क्रियाएं मात्र हैं |
उनका व्यक्ति के तात्कालिक जीवन (Current life) पर बहुत
प्रभाव पड़ता है परन्तु भावी जीवन पर कुछ भी प्रभाव नहीं रहता क्योंकि अभी तक किसी ऐसी
खोज को सफलता प्राप्त नहीं हुई है जो सिद्ध कर सके कि इन गुणों से भावी जीवन प्रभावित
होता हो | विज्ञान कहता है कि यह शरीर ही एक मात्र जीवन (Only one life) है और इस देह के अवसान के साथ ही यह जीवन भी
समाप्त हो जाता है | हमारे शास्त्र यह कहते हैं कि नहीं, इस जीवन की प्रत्येक बात
का, प्रत्येक घटना का और प्रत्येक कर्म, यहाँ तक कि प्रत्येक विचार का पूर्व तथा भावी
जीवन (Next
life) से सम्बन्ध अवश्य ही
होता/रहता है | एक जन्म का दूसरे जन्म से घनिष्ठ सम्बन्ध है और पहले जीवन के आधार
पर ही दूसरा जीवन निश्चित किया जाता है | कुल मिलाकर विज्ञान एक जीवन का उसी जीवन
में प्रारम्भ मानता है और इस एक जीवन की समाप्ति को उसी जीवन की पूर्णता मानता है |
सनातन-शास्त्र, कर्म को केवल प्रधान ही न मान कर साथ ही साथ उन्हें भावी जन्म का
भविष्य तक होना मानते हैं और इस प्रकार नए व पुराने जीवन के केंद्र में सदैव मनुष्य
जीवन में किये गए कर्म ही रहते हैं | अतः सर्वप्रथम हम कर्म के बारे में जानते हुए
विज्ञान की अब तक हुई शोध के आधार पर एक परिकल्पना (Hypothesis)
प्रस्तुत करेंगे कि पुनर्जन्म को कर्म कैसे प्रभावित करते हैं ? इसके लिए हमें
मनुष्य जीवन में उसके द्वारा किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के कर्मों को जानना
होगा |
विज्ञान जिन्हें क्रिया (Activity) और कर्म
(Action) दो में विभाजित करता है, सनातन-शास्त्र भी इन
कर्मों को दो में विभाजित करता है | इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कर्म दो प्रकार
के होते हैं –
1.स्वतःस्फूर्त कर्म
(Self-motivated
or automatic acts) 2. क्रियमाण कर्म अथवा क्रियान्वयन कर्म (Initiative acts)
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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