गुण-कर्म विज्ञान – 41
कर्म का गुणों पर
प्रभाव-
गुण से कर्म बनते हैं और कर्म से गुण
बनते हैं | यह एक प्रकार की दुतरफा यानि प्रतिवर्ती क्रिया (Reversible action) है | कहने का अर्थ है कि गुण से कर्म होते हैं
और फिर ये कर्म गुणों को परिवर्तित कर देते हैं | ऐसा संभव होता है, निरंतर एक प्रकार के ही कर्मों को बार-बार दोहराए
जाने से | जिस प्रकार रस्सी से कुएं में से लगातार कई दिनों तक पानी निकालने से
हाथ की हथेली में एक प्रकार का कडापन आ जाता है, वह भौतिक गुण में परिवर्तन का एक
उदाहरण है | इसी प्रकार पेटू व्यक्ति का आमाशय सदैव अत्यधिक मात्रा में भोजन करने के
कारण बड़े आकार का हो जाता है | सदैव मिष्ठान के प्रति आसक्ति रखने वाले व्यक्तियों
के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रण में रखने के लिए अग्नाशय (Pancreas) से इन्सुलिन (Insulin) अधिक मात्रा
में स्रावित (Secrete)
होती रहती है जो कि रासायनिक
गुण में परिवर्तन का एक उदाहरण है | इसी प्रकार कामी पुरुषों के रक्त में
टेस्टोस्टेरोन (Testosterone)
नामक पुरुष हार्मोन्स
का स्तर (Level)
ऊँचा (High) देखा गया है | राग-द्वेष, क्रोधी, अहंकारी
व्यक्तियों में मस्तिष्क की विद्युतीय तरंगों में अति सक्रियता व विविधता मापी गयी
है, जो कर्मों के द्वारा विद्युतीय गुण प्रभावित होने का एक उदाहरण है |
तीन प्रकार के प्राकृतिक गुणों
में चाहे जिस प्रकार के गुण/गुणों में परिवर्तन हो जाते हों, वे सभी परिवर्तन विद्युत
संकेतों के रूप में ही चित्त में अंकित होते है | मन, बुद्धि और अहंकार को सामूहिक
रूप से चित्त अथवा अंतर्मन कहा जाता है | इस प्रकार जीवात्मा में मन, बुद्धि और
अहंकार, तीनों ही आत्मा के साथ सम्मिलित रहते हैं और देहावसान होने पर शरीर को छोड़कर
आगे की यात्रा पर निकल पड़ते हैं | संचित-कर्म तो विभिन्न परिवर्तित गुणों के रूप
में मन (चित्त) में अंकित रहते हैं | अहंकार भावी जन्म और नए शरीर को प्राप्त करने
में सहयोग प्रदान करता है जबकि बुद्धि प्राप्त हुए शरीर में जाकर मन के माध्यम से
संचित-कर्मों का फल दिलाने के लिए काम्य-कर्म प्रारम्भ कराने में भूमिका निभाती है
| इस प्रकार मन, बुद्धि और अहंकार, तीनों ही सूक्ष्म विद्युत संकेतों के रूप में आत्मा
के साथ संलग्न होकर एक शरीर से दूसरे भौतिक
शरीर की यात्रा करते रहते हैं | त्याग देते हैं | जीवात्मा में से जीव अर्थात मन, बुद्धि
और अहंकार तो नये शरीर में प्रवेश कर कर्मों का प्रारम्भ करवा देते हैं तथा आत्मा
उदासीन (Neutral)
अवस्था में मात्र
दृष्टा (Viewer)
की भूमिका में उस नए
शरीर में उसके अवसान होने तक उपस्थित रहती है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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