Saturday, February 11, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 38

गुण-कर्म विज्ञान – 38
            वे सकाम-कर्म जो तत्काल और इसी जीवन में फल प्रदान करते हैं और हमें कर्म व कर्म-फल दोनों ही होते (Doing) और मिलते (Achieving) हुए दिखाई देते हैं वे काम्य-कर्म (Desirable acts) कहलाते हैं | जैसे कि हमारी इच्छा हुई कि हमें आज सिनेमा देखने जाना है और हम घर से हॉल तक पहुँच जाते हैं | इन कर्मों के अंतर्गत वे कर्म भी आ जाते हैं जिनका परिणाम हमें पहले से ही पता रहता है और हम उसी के अनुसार कर्म करते और फल भी पाते हैं | हमें ज्ञान होता है कि आग हमारे हाथ को जला सकती है, फिर भी हम आग में अपना हाथ दे देते हैं और जला बैठते हैं | प्रत्येक व्यक्ति हिंसा का परिणाम जानता है और उसे हिंसा करने पर सज़ा के तौर पर यहीं और इसी जन्म में परिणाम भोगना पड़ता है | अगर किसी कारण से इस जन्म में उस हिंसा का फल प्राप्त नहीं होता है अथवा अपर्याप्त मिलता है, तो यही हिंसक कर्म संचित होकर अगले जन्म में फलीभूत होता है | इस प्रकार हम कह सकते हैं कि काम्य-कर्म को किया भी जा सकता है और टाला भी जा सकता है | इसके लिए आपकी बुद्धि का मन पर प्रभावी होना आवश्यक है | जो काम्य कर्म पूर्वजन्म के संचित कर्म के कारण होने जा रहा है, उसको टालना असंभव है परन्तु जो काम्य कर्म हम अपनी इस जन्म की इच्छा से करना चाहते हैं, उसको हम अपनी इच्छा से टाल सकते हैं |
             वे सकाम-कर्म जिन्हें हम अपनी इच्छा से भी करते हैं, परिणाम भी हम जानते हैं परन्तु उसका फल प्राप्त करने से इस जीवन में वंचित रह जाते हैं, ऐसे सभी संचित-कर्म के रूप में परिवर्तित होकर नए जन्म में परिणाम देने वाले होते हैं | ऐसे संचित-कर्म मन में अंकित होते रहते हैं और भौतिक देह (Physical body) की समाप्ति पर जीवात्मा के साथ अंतरिक्ष में चले जाते हैं | उन संचित कर्मों का विश्लेषण कर जीवात्मा उसी के अनुरूप नया शरीर ढूँढती है और फिर उसमें प्रवेश कर उस संचित-कर्म के फल को प्राप्त करने का प्रयास करती है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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