गुण-कर्म विज्ञान –
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विज्ञान की दृष्टि
में गुण-परिवर्तन का प्रभाव -
मनुष्य के शरीर में उपस्थित भौतिक गुणों
में परिवर्तन दो प्रकार से हो सकता है – तात्कालिक/अस्थाई तथा स्थाई | तात्कालिक या
अस्थाई (Temporary)
परिवर्तन ज्यादातर
दुर्घटना के कारण होता है और इस कारण से उसके शरीर के अंग वर्तमान जीवन में
क्षतिग्रस्त होते हैं अर्थात उसके शारीरिक अंगों में भौतिक परिवर्तन होता है | ऐसा
परिवर्तन भावी जीवन (New life) को
भौतिक रूप से परिवर्तित नहीं करता है | जबकि स्थाई (Permanent) परिवर्तन
में भौतिक गुण इतने अधिक परिवर्तित (Change) हो जाते
हैं कि वे कई जन्मों तक प्राणी को शारीरिक भौतिक व्याधि (Physically handicap) से पीड़ित करते रहते हैं | यह स्थिति तब तक सही
नहीं हो सकती जब तक मनुष्य जीवन पुनः नहीं मिल जाता | मनुष्य जीवन में व्यक्ति
अपने कर्मों में सुधार करते हुए पुनः सामान्य अवस्था में आ सकता है | रासायनिक
गुणों और विद्युतीय गुणों में परिवर्तन भी भौतिक गुणों की तरह सतत चलने वाली
प्रक्रिया है | एक गुण में आया परिवर्तन शेष दो गुणों में भी कुछ न कुछ परिवर्तन
अवश्य ही करता है | इस प्रकार भौतिक, रासायनिक और विद्युतीय गुणों में स्थाई
परिवर्तन प्राणी की देह के साथ-साथ उसमें होने वाली रासायनिक क्रियाओं और मानसिक
विचारों (Thoughts)
तक को प्रभावित करता
है |
डार्विन का विकास वाद का सिद्धांत भी
यही बात कहता है जो बात हमारे शास्त्र सहस्राब्दियों से कहते आ रहे हैं | मानव का पूंछ
विहीन हो जाना इसी प्रकार के भौतिक गुणों में आये स्थाई परिवर्तन का एक उदाहरण है |
जब कोई अंग मनुष्य के लिए उपयोगी नहीं रहता तो धीरे-धीरे उस अंग का लोप होना
प्रारम्भ हो जाता है और एक लम्बी अवधि के बाद वह अंग शरीर से ही हट जाता है जैसे
कि मनुष्य में पूंछ का अनुपयोगी होने के कारण हट जाना | इसी प्रकार जब किसी अंग का
सर्वाधिक उपयोग किया जाता है, तब उस अंग में निरंतर परिवर्तन होकर सुधार होता रहता
है | मनुष्य के मस्तिष्क का विकसित होते जाना इसका एक उदाहरण है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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