गुण-कर्म विज्ञान –
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शास्त्रों के अनुसार
गुणों में परिवर्तन का प्रभाव-
हमने विज्ञान के आधार पर यह जाना कि मनुष्य में
कैसे प्राकृतिक गुणों में अस्थायी व स्थाई परिवर्तन हो जाना उसके वर्तमान व भावी
जीवन को प्रभावित करता है | अकेले एक गुण से जैसे किसी भी प्रकार का कर्म संपन्न नहीं
हो सकता, उसी प्रकार अकेले एक गुण में परिवर्तन होना भी लगभग असंभव है | परिवर्तन
प्रायः सभी गुणों में होता है जिसका परिणाम अप्रत्यक्ष (Indirectly) रूप से उसके वर्तमान व भावी जीवन को बदल देता है |
वर्तमान जीवन में जो अस्थायी परिवर्तन आते हैं वे वापिस सही भी हो सकते हैं | जब
किसी एक गुण से बार-बार एक ही प्रकार के कर्म करवाए जाते हैं तब उस गुण में स्थाई
परिवर्तन आ ही जाता है, जो शेष दो गुणों को भी एक सीमा तक परिवर्तित कर देता है |
स्थाई परिवर्तन विद्युतीय संकेतों के रूप में चित्त में जाकर संचित (Store) हो जाते हैं और देह मुक्ति के समय जीवात्मा (Spirit) उनको अपने साथ ले जाती है | फिर गुणों में आया यह
परिवर्तन नयी योनि में जन्म लेने के साथ ही नए जीवन में दृष्टिगोचर होने लगता है |
इस प्रकार यह परिवर्तन विभिन्न प्रकार के शरीरों में जाकर तब तक परिणाम देता रहता
है, जब तक जीवात्मा उस परिवर्तन के परिणामों को भोगकर उन परिवर्तित हुए गुणों से मुक्त
नहीं हो जाता |
समस्त परिवर्तित हुए गुणों के अनुसार
किये गए कर्मों के फलों को भोग लेने के पश्चात ही जीवात्मा एक प्रकार की ऐसी नयी मनुष्य
योनि को पुन: प्राप्त कर सकता है, जैसी मनुष्य योनि उसे सर्वप्रथम मिली थी | वहाँ से
वह फिर प्राकृतिक गुणों के साथ नया गुण-कर्म चक्र प्रारम्भ कर सकता है | इस स्थिति
को प्राप्त करने में कई कल्प लग जाते हैं | गुणों में परिवर्तन होने के उपरांत
मिली किसी अन्य प्राणी की योनि में तो वह केवल पूर्व के कर्म के फल ही भोगता है और
बाद में कभी मनुष्य योनि मिलने पर व्यक्ति उन गुणों के कर्म फलों को तो भोगता ही
है, साथ ही साथ इन गुणों में आये परिवर्तन को अपने प्रयास से सुधार सकता है | इस
प्रकार यह संसार-चक्र निरंतर चलता रहता है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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