Thursday, February 16, 2017

गुण-कर्म विज्ञान -43

गुण-कर्म विज्ञान – 43
                परमात्मा कहते हैं कि शरीर के नष्ट हो जाने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि कर्म और गुण भी उसके साथ ही नष्ट हो गए हैं | सभी कर्म गुणों के रूप में चित्त के साथ संलग्न हो गए हैं और वे जीवात्मा के द्वारा दूसरा शरीर प्राप्त कर लेने का इंतजार कर रहे हैं | ज्योंही जीवात्मा को नया शरीर प्राप्त होगा, उसके साथ गए सभी गुण आपस में क्रिया करना प्रारम्भ कर देंगे और एक नई जीवन-यात्रा प्रारम्भ हो जाएगी | यह नई यात्रा पूर्ववर्ती जीवन यात्रा के अंतिम छोर से ही आगे बढ़ना प्रारम्भ करती है, ऐसे में उसे नई यात्रा न कहकर अनवरत चलने वाली यात्रा कहना अधिक उपयुक्त होगा | इस अनवरत यात्रा में केवल साधन (शरीर) बदलते रहते हैं, यात्री वही रहता है | अतः देह के खो जाने पर ‘सब कुछ खो गया है’, कहना अनुचित है | एक साधन छूटता है तो दूसरा नया साधन अवश्य ही उपलब्ध होगा और ऐसे विभिन्न प्रकार के साधन तब तक उपलब्ध होते रहेंगे, जब तक आपकी यात्रा पूरी नहीं हो जाती | इस बात को स्पष्ट करते हुए श्री कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं-
                  तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् |
                 यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ||गीता-6/43||
अर्थात वहां उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्धि संयोग को वह अनायास ही पुनः प्राप्त कर लेता है, और हे कुरुनन्दन ! उसके प्रभाव से वह फिर से सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले से अधिक प्रयत्न करता है |
             संग्रह किये हुए बुद्धि संयोग से तात्पर्य उन गुणों का विद्युत संकेतों में अंकन ही है, जो चित्त के साथ जीवात्मा के रूप में शरीर के देहावसान होने पर उसे छोड़ देते हैं | चित्त में मन, बुद्धि और अहंकार तीनों समाहित है परन्तु कर्मों का प्रारम्भ नए शरीर में बुद्धि के प्रभाव से ही प्रारम्भ हो सकता है | इसीलिए भगवान श्री कृष्ण यहाँ पर स्पष्ट कर रहे हैं कि गुणों और बुद्धि के संयोग से वह नया शरीर उन कर्मों को अनायास ही प्राप्त कर लेता है | अनायास से अर्थ है बिना किसी विशेष प्रयास के क्योंकि ये गुण इस शरीर में पुराने शरीर के द्वारा किये गए कर्मों के आधार पर ही उपलब्ध हुए हैं | एक मानव जन्म में किये गए प्रयास व कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाते हैं बल्कि वे नए जीवन का आधार भी तैयार करते हैं | जिसके फलस्वरूप ऐसी देह और ऐसा परिवार मिलता है जहाँ पूर्वजन्म के शरीर से संग्रह किये गए कर्म और बुद्धि के संयोग से व्यक्ति नए जन्म में अपने कर्मों को गति प्रदान कर लक्ष्य प्राप्त कर सकता है | ऐसा तभी संभव हो सकता है जब पूर्वजन्म के सभी गुण और कर्म बुद्धि के साथ नए शरीर को मिले | जहाँ प्रकृति के गुणों के साथ बुद्धि और मन दोनों की उपस्थिति हो, वहां कर्म का होना अवश्यम्भावी है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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