Tuesday, February 21, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 48

गुण-कर्म विज्ञान – 48
             गुणों के कारण जो कर्म स्वतः ही होते रहते हैं और वे स्वतः स्फूर्त कर्म कहलाते हैं |  जब स्वतः स्फूर्त कर्म के गुणों में परिवर्तन आ जाता है, तब वे तत्काल अपना प्रभाव दिखाते हैं | प्रारम्भ में यह प्रभाव अस्थायी होता है, परन्तु एक ही प्रकार की क्रिया बार-बार दोहराए जाने से गुणों में स्थाई परिवर्तन हो जाता है | मनुष्य के गुण कर्म करते हैं और एक ही प्रकार के कर्म करते रहने से उसके पूर्ववर्ती गुण भी परिवर्तित हो जाते है | ये गुणों का परिवर्तन चित्त में अंकित होता रहता है, जो नए जन्म में जाकर उसी के अनुरूप व्याधि के रूप में प्रकट होता है | इसी लिए हमारे शास्त्र वर्तमान जीवन की किसी भी व्याधि को पूर्वजन्म के कर्मों का प्रभाव बताते हैं | ऐसी कई व्याधियां हैं जिनका कारण आज तक विज्ञान बता नहीं पाया है, वे सभी रोग पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम है, ऐसा हमारे शास्त्र स्पष्ट रूप से कहते हैं |
               क्रियान्वयन कर्म को करने में कारण तो प्रकृति के गुण ही होते हैं, परन्तु इनको प्रारम्भ करने में मनुष्य के मन की भूमिका अहम् रहती है | मन के कारण ही ये कर्म मनुष्य के सुख-दुःख का कारण बनते हैं | इन्हीं सुख-दुःख को आप ह्रदय की गहराई से कितना महत्त्व देते हैं, उसी पर गुणों में परिवर्तन होना निर्भर करता है | इसीलिए भगवन श्री कृष्ण कहते हैं कि जिस व्यक्ति के लिए सुख-दुःख, मान-अपमान आदि सब एक समान है और जिसमें राग-द्वेष नहीं है वह मुझे सबसे प्रिय है | जो व्यक्ति इन द्वंद्वों से निकल गया है और निर्द्वंद्व अवस्था को उपलब्ध हो गया है, फिर उसके गुणों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होना असंभव है | ऐसे व्यक्ति में प्राकृतिक गुण सदैव अपनी वास्तविक स्थिति में बने रहते हैं | जिसने जीवन में द्वंद्व (Conflict) पर नियंत्रण नहीं किया वह गुण और कर्म के जाल में लिप्त होकर फंसता जाता है | ऐसे व्यक्ति में कर्म ही गुणों में परिवर्तन कर देते हैं जो अनन्त जन्मों तक उसके साथ चलते रहते है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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