गुण-कर्म विज्ञान –
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गुणों के कारण जो कर्म स्वतः ही
होते रहते हैं और वे स्वतः स्फूर्त कर्म कहलाते हैं | जब स्वतः स्फूर्त कर्म के गुणों में परिवर्तन आ
जाता है, तब वे तत्काल अपना प्रभाव दिखाते हैं | प्रारम्भ में यह प्रभाव अस्थायी
होता है, परन्तु एक ही प्रकार की क्रिया बार-बार दोहराए जाने से गुणों में स्थाई
परिवर्तन हो जाता है | मनुष्य के गुण कर्म करते हैं और एक ही प्रकार के कर्म करते
रहने से उसके पूर्ववर्ती गुण भी परिवर्तित हो जाते है | ये गुणों का परिवर्तन
चित्त में अंकित होता रहता है, जो नए जन्म में जाकर उसी के अनुरूप व्याधि के रूप
में प्रकट होता है | इसी लिए हमारे शास्त्र वर्तमान जीवन की किसी भी व्याधि को
पूर्वजन्म के कर्मों का प्रभाव बताते हैं | ऐसी कई व्याधियां हैं जिनका कारण आज तक
विज्ञान बता नहीं पाया है, वे सभी रोग पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम है, ऐसा
हमारे शास्त्र स्पष्ट रूप से कहते हैं |
क्रियान्वयन कर्म को करने में कारण
तो प्रकृति के गुण ही होते हैं, परन्तु इनको प्रारम्भ करने में मनुष्य के मन की
भूमिका अहम् रहती है | मन के कारण ही ये कर्म मनुष्य के सुख-दुःख का कारण बनते
हैं | इन्हीं सुख-दुःख को आप ह्रदय की गहराई से कितना महत्त्व देते हैं, उसी पर
गुणों में परिवर्तन होना निर्भर करता है | इसीलिए भगवन श्री कृष्ण कहते हैं कि जिस
व्यक्ति के लिए सुख-दुःख, मान-अपमान आदि सब एक समान है और जिसमें राग-द्वेष नहीं है
वह मुझे सबसे प्रिय है | जो व्यक्ति इन द्वंद्वों से निकल गया है और निर्द्वंद्व अवस्था
को उपलब्ध हो गया है, फिर उसके गुणों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होना असंभव
है | ऐसे व्यक्ति में प्राकृतिक गुण सदैव अपनी वास्तविक स्थिति में बने रहते हैं |
जिसने जीवन में द्वंद्व (Conflict) पर
नियंत्रण नहीं किया वह गुण और कर्म के जाल में लिप्त होकर फंसता जाता है | ऐसे
व्यक्ति में कर्म ही गुणों में परिवर्तन कर देते हैं जो अनन्त जन्मों तक उसके साथ
चलते रहते है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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