गुण-कर्म विज्ञान – 36
स्वतः स्फूर्त कर्म से अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्रियमाण कर्म | हमारे जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले इन कर्मों के बारे में विस्तार से जानना आवश्यक है |
क्रियमाण अथवा क्रियान्वयन कर्म (Initiated or implemented acts) –
क्रियमाण/क्रियान्वयन कर्म वे कर्म होते हैं, जो मनुष्य स्व-इच्छा (Will) से करता है अर्थात ऐसे कर्मों के होने में मन की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती है | इन्हें क्रियान्वयन कर्म इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका क्रियान्वयन (Activation) अथवा सूत्रपात (Initiation) यानि प्रारम्भ मन की इच्छा के कारण ही होता है | इस प्रकार के कर्म दो प्रकार के होते हैं – सकाम कर्म (Targeted acts) और निष्काम कर्म (Platonic acts)|
सकाम कर्म व्यक्ति किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करता है और यह लक्ष्य हमारा मन, बुद्धि और अहंकार निर्धारित करते हैं | सकाम कर्म में यह लक्ष्य प्रायः हमारे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए और दीर्घकालीन होता है और इसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति किसी भी प्रकार के कर्म कर सकता है | निष्काम कर्म में लक्ष्य तो निर्धारित होता है, परन्तु स्वार्थ के लिए न होकर परमार्थ की भावना से और तात्कालिक होता है | जैसे किसी व्यक्ति में कामना जगती है कि वह अथाह सम्पति प्राप्त करे, ऐसे में वह जो भी कर्म करेगा वे सभी सकाम कर्म होंगे और उन कर्मों की योजना भी दीर्घकालिक होगी | इसी प्रकार अगर कहीं पर संकटग्रस्त व्यक्ति की सहायता करने की बात आती है, तो व्यक्ति तत्काल ही उसे संकट से मुक्त करने का प्रयास करता है | इस कर्म में उसका लक्ष्य तो होता है परन्तु वह लक्ष्य तात्कालिक व निस्वार्थ होता है | अतः यह कर्म निष्काम-कर्म की श्रेणी में आ जायेगा |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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