गुण-कर्म विज्ञान –
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इसकी ठीक विपरीत की क्रिया भोजन न मिलने (Fasting) की परिस्थिति में होती है | ऐसी स्थिति में जब रक्त
में शर्करा (Glucose)
की मात्रा कम होने
लगती है तब यकृत में (Store) संचित किया हुआ गैलेक्टोज
(Galactose) टूटता है, उसका विखंडन (Disintegration) हो जाता है और वह शर्करा में परिवर्तित हो जाता
है, जिससे रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़कर अपने उचित स्तर (Normal level) को
प्राप्त कर लेती है | ये सभी क्रियाएं स्वतः (Automatic) ही होती
रहती है | स्वतः से मेरा तात्पर्य है कि इस भौतिक शरीर को इन क्रियाओं के होने का भान
नहीं होता है |
इस प्रकार इस शरीर में/से विभिन्न
प्रकार के कर्म होते रहते हैं, जिसमें पदार्थ के गुणों और मन दोनों की भूमिका रहती
है | प्रकृति के गुण और मन के कारण जो क्रियाएं शरीर में होती है, उन्हीं को कर्म
कहते हैं | विज्ञान के अनुसार जिस कर्म को करने में केवल गुणों की आपस में होने
वाली क्रियाओं की भूमिका होती है वे कर्म न होकर केवल मात्र रासायनिक क्रियाएं (Chemical activity) मात्र होती हैं और जिन कर्मों और क्रियाओं को करने
में गुणों के साथ-साथ मन की भूमिका भी होती हैं, वे सभी क्रियाएं कर्म (Action) कहलाती हैं | जबकि हमारे शास्त्र कहते हैं कि
दोनों ही प्रकार की क्रियाओं को कर्म (Action) न मानकर
मात्र क्रिया (Activity)
ही मानना चाहिए और
अगर हम किसी भी एक क्रिया को कर्म मानते हैं तो फिर सभी क्रियाएं कर्म ही मानी
जानी चाहिए | चूंकि मनुष्य सभी क्रियाओं (Activities) को, जो
वह अपने मन (Mind)
के अनुसार करने की और
अपने द्वारा होने की कहता है, कर्म (Action) कहलाता
है अतः हमारे शास्त्र सभी क्रियाओं को कर्म मानते हुए उन्हें केवल एक ‘कर्म’ नाम
से ही संबोधित करता है | विज्ञान और सनातन-शास्त्र में कर्म के सम्बन्ध में यही
मूलभूत अंतर है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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