Sunday, February 26, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 53

गुण-कर्म विज्ञान – 53
                प्रथम प्रकार के एक जन्म से दूसरे जन्म में गुणों के स्थानान्तरण में मनुष्य की भूमिका मात्र कर्म करने तक ही सीमित रहती है | व्यक्ति अपने मानव जीवन में जैसे भी कर्म करता है, गुणों के स्वरूप भी उसी प्रकार परिवर्तित हो जाते हैं | व्यक्ति के मनुष्य जीवन में यही परिवर्तित गुण मनोमय कोष (mindful sheath), विज्ञानमय कोष (Knowledge  sheath) और आनंदमय कोष (Joyous  sheath) में विद्युत-चुम्बकीय संकेतों (Electromagnetic signals) के रूप में संचित होते रहते है | ये गुण समस्त तीनों कोषों में संग्रहित होते रहते है, जो कि मृत्यु उपरांत उस शरीर को छोड़ कर आत्मा के साथ नए शरीर की तलाश में निकल पड़ते हैं | अन्नमय ( Grainful  sheath) कोष और प्राणमय कोष (Livelihood sheath) के परिवर्तित गुण तो उन्हीं कोषों के साथ इसी धरा पर मृत्यु के पश्चात रह जाते हैं परन्तु उसके संकेत उपरोक्त तीनों कोषों अर्थात चित्त में अंकित रह जाते हैं | मृत देह के विसर्जन (Dispose) के उपरांत जो पदार्थ बिखर जाते हैं, वे समय पाकर पुनः संयुक्त होते हैं और उन्हीं परिवर्तित गुणों को आधार बनाकर उसी के अनुरूप किसी दूसरे शरीर का निर्माण करते हैं | इस नए शरीर के अंतर्गत ही उपरोक्त दोनों कोष आ जाते हैं | इस प्रकार एक भौतिक शरीर से दूसरे भौतिक शरीर में ये गुण स्थानांतरित (Transfer) हो जाते हैं और फिर जब इस नए शरीर में शेष तीन कोषों का प्रवेश होता है तब यही गुण मिलकर पुनः कर्म की प्रक्रिया को प्रारम्भ कर देते हैं | इस प्रकार गुणों का जो स्थानान्तरण होता है, उसे एक साधारण व्यक्ति अपने जीवन में कभी अनुभव नहीं कर पाता |
           जिस प्रकार इस प्रक्रिया का वर्णन किया गया है, उतनी सहजता और सरलता के साथ यह संपन्न नहीं होती है | इस प्रक्रिया को पूर्ण होने में समय की कोई निश्चित सीमा नहीं होती और न ही ऐसा कोई नियम है कि जो दो कोष यहाँ देहावसान के उपरांत रह जाते हैं, उन्हीं के समस्त गुणों को समाहित करते हुए वैसी ही देह का निर्माण होगा | देह और उसमें समाहित गुणों के स्वरूप में परिवर्तन होता रहता है परन्तु दोनों कोष (अन्नमय व प्राणमय कोष) अवश्य ही बने रहते हैं | दोनों कोष के गुण पूर्व के दोनों कोष की भांति नहीं रहेंगे जबकि इन दोनों कोषों की तुलना में शेष रहे तीनों कोष (मनोमय, ज्ञानमय और आनंदमय कोष) के गुण पूर्व की भांति बने रहते हैं जो प्रत्येक बार विभिन्न प्रकार की योनियों के अलग-अलग शरीर प्राप्त करते हुए यात्रा करते रहते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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