गुण-कर्म विज्ञान –
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कर्मों का जीवन पर प्रभाव-
कर्म और उसका प्रकृति के गुणों पर पड़ने
वाले प्रभाव को जान लेने के उपरांत यह जानना आवश्यक है कि ये गुण-कर्म हमारे जीवन
को किस प्रकार प्रभावित करते हैं ? तो आइये, सर्वप्रथम हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि कर्मों का वर्तमान
जीवन में और भावी जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है ? जितने भी शरीर के भौतिक, रासायनिक
गुण और विद्युतीय गुण हैं, उनमें से किसी एक में अथवा सभी में विकार आने पर
व्यक्ति रोगी बन जाता है | भौतिक गुणों में परिवर्तन आने से शरीर के कार्मिक अंगों
में विकार पैदा हो जाता है जैसे दुर्घटना में अंग-भंग हो जाना, शरीर में कैंसर
जैसी बीमारी का होना आदि | रासायनिक गुणों में विकार आ जाने से व्यक्ति के शरीर की
क्रियाओं पर असर पड़ता है जैसे अपच का शिकार होना, अतिसार रोग, हार्मोन्स का
असंतुलित हो जाना, गर्भ का गिर जाना, गर्भ-धारण न कर पाना, गर्भाधान में सक्षम न
होना, मधुमेह आदि | इसी प्रकार विद्युतीय गुणों में विकार पैदा हो जाने से व्यक्ति
का मानसिक रोगी हो जाना है | आप यह जानकर आश्चर्यचकित रह जायेंगे कि जो भी आधुनिक
युग की बीमारियाँ हैं, प्रायः इन विद्युतीय गुणों में विकार आने से ही हो रही है |
हमारे धर्म-शास्त्रों में सहस्राब्दियों पहले ही इन बीमारियों के बारे में स्पष्ट
करते हुए इनसे बचकर रहने को कहा गया है | ये बीमारियाँ हैं- राग-द्वेष, मान-अपमान
की भावना, मोह, लोभ, ममता, क्रोध, असंतुष्टि की भावना, विषाद, अभिमान आदि | यह सभी
मानसिक विकार हैं जो विद्युतीय गुणों में विकार आने से पैदा होते है |
जीवन में ऐसा कभी नहीं होता कि केवल
एक गुण ही प्रभावित होता हो | यह तो हो सकता है कि एक गुण अधिक प्रभावित हो परन्तु
साथ में शेष दो गुण भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते | भौतिक गुण प्रभावित होते
हैं तो व्यक्ति की केवल कार्य क्षमता प्रभावित होती है और भौतिक गुण अत्यल्प रूप
से रासायनिक और विद्युतीय गुणों को भी प्रभावित करते हैं | रासायनिक गुणों से
शारीरिक क्रियाएं प्रभावित होती है और साथ में वह भौतिक गुण को ज्यादातर प्रभावित
करती ही है और विद्युतीय गुणों को भी | जबकि विद्युतीय गुणों में विकार आने पर वे
भौतिक और रासायनिक गुणों, दोनों को ही प्रभावित करते है | हम जानते हैं कि जो भी
कर्म इस शरीर द्वारा होते हैं, वे सभी इन्हीं तीनों गुणों से ही होते हैं और फिर
ये कर्म ही इन तीनों गुणों को प्रभावित भी करते हैं | इस प्रकार गुण-कर्म, कर्म-गुण
का एक अकाट्य चक्र बन जाता है जिसको तोडना बहुत ही मुश्किल हो जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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