Saturday, February 25, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 52

गुण-कर्म विज्ञान – 52
          किसी एक अचेतन पदार्थ के गुणों में का दूसरे अचेतन पदार्थ में कृत्रिम रूप से स्थानान्तरण कर देना भविष्य में शायद संभव हो जायेगा परन्तु प्राकृतिक रूप से गुणों का स्थानान्तरण चेतन और अचेतन दोनों में ही सदैव होता रहता है | अचेतन में यह परिवर्तनशीलता निश्चित ही है तभी उन्हें जड़ पदार्थ कहा जाता है | मनुष्य में गुणों का स्थानान्तरण कैसे संभव हो सकता है ? आइये, अब हम इन गुणों और कर्मों के आधार पर जानने का प्रयास करें कि ये गुण एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित कैसे होते हैं ? 
          पदार्थ के तीन गुण आपस में अपनी गति से क्रिया करते रहते हैं और यह क्रिया अनन्त काल से होती आ रही है | पदार्थ का इन गुणों के कारण क्षरण होता है और फिर इन्हीं गुणों के कारण उनका पुनर्निर्माण भी होता है | इस प्रकार यह क्षरण, निर्माण और पुनः क्षरण का अटूट चक्र चलता रहता है | इस प्रकार प्रकृति के नियमानुसार उसके पदार्थ के गुण एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में स्थानांतरित होते रहते हैं | इस प्रकार गुणों का स्थानान्तरण निर्जीव पदार्थों में होने वाली एक प्राकृतिक व स्वाभाविक प्रक्रिया है | इस प्रक्रिया के बारे में आधुनिक विज्ञान लगभग पूर्ण रूप से जान चूका है |
          निर्जीव पदार्थों में गुणों का स्थानांतरण बहुत ही साधारण और नियमानुसार होने वाली एक प्रक्रिया है, जबकि सजीव में यही प्रक्रिया होती तो नियमानुसार ही है परन्तु होती बड़ी जटिल है | इस प्रक्रिया को विज्ञान अभी तक नहीं समझ पाया है | हाँ, हमारे ऋषि-मुनि इस प्रक्रिया को अवश्य जानते थे और हमारे सनातन-शास्त्र इस प्रक्रिया को स्पष्ट रूप सी व्यक्त भी करते हैं | सजीव में यह गुणों का स्थानान्तरण निर्जीव में भौतिक रूप से दिखाई पड़ने वाले स्थानान्तरण से एकदम भिन्न होता है | किसी भी सजीव में यह स्थानान्तरण मुख्यतः विद्युत-चुम्बकीय संकेतों के द्वारा होता है | मनुष्य में गुणों का स्थानान्तरण मुख्यतः तीन प्रकार से होता है –
1.       एक मानव के शरीर से पुनर्जन्म लेकर प्राप्त हुए दूसरे शरीर में |      
2.       एक मानव के शरीर से किसी निर्जीव तथा आस पास के वातावरण में |
3.       एक मानव के शरीर से किसी दूसरे प्राणी के शरीर में |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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