Sunday, February 12, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 39

गुण-कर्म विज्ञान – 39
              इस प्रकार हमने जाना कि कर्म ही इस संसार-चक्र के केंद्र में है | कर्म है तो संसार है और जिस दिन हम अपने गुणों में एक उच्च स्तर का परिवर्तन कर लेंगे तब उन गुणों द्वारा किये गए सभी कर्म सत्कर्म हो जायेंगे | जब हम उन सत्कर्मों को परमात्मा को समर्पित कर देते हैं तब वे ही सत्कर्म अकर्म हो जा जाते हैं और हम जानते ही हैं कि अकर्म का कोई फल प्राप्त नहीं होता | ऐसी अवस्था तक अगर एक व्यक्ति भी पहुँच पाता है तो उसके लिए तत्काल ही संसार समाप्त हो जाता है | अकर्म के अतिरिक्त सभी कर्म फल देने वाले हैं और वे प्रायः सकाम कर्म ही होते हैं | सकाम कर्म से काम्य कर्म होते हैं फिर काम्य से संचित कर्म और यही संचित कर्म नए जीवन में जाकर पुनः सकाम कर्म प्रारम्भ कराते हुए काम्य कर्म करने को विवश कर देते हैं | काम्य कर्मों से संचित कर्म और फिर संचित कर्मों से काम्य कर्म, यह अभेद्य चक्र (Unbreakable cycle) युग युगों तक चलता रहेगा |
           श्री मद्भागवत गीता में कर्मों की तीन श्रेणियां बताई गई है-कर्म, अकर्म और विकर्म | वास्तव में देखा जाये तो कर्म में सकाम कर्म और निष्काम कर्म दोनों ही आ जाते हैं तथा सकाम कर्म में विकर्म भी आ जाते हैं | कर्म न करने अथवा कर्म करते हुए भी स्वयं के द्वारा न करने का मानना अर्थात कर्तापन का अभाव वाले कर्म अकर्म की श्रेणी में आते हैं | विकर्म वे सकाम कर्म होते हैं, जो शास्त्र विरुद्ध तो होते ही हैं, साथ ही साथ किसी दूसरे को दुःख पहुँचाने की दृष्टि से किये जाते हैं | इस प्रकार कर्म की दो ही मुख्य श्रेणियां हुई, कर्म और अकर्म | कर्म में कर्तापन होता है जबकि अकर्म में नहीं | कर्म के अंतर्गत सकाम कर्म में कामना रहती है जबकि निष्काम कर्म में किसी भी प्रकार की कामना नहीं होती | सकाम कर्म शास्त्र सम्मत न हो, तो वे विकर्म कहलाते हैं | इसी प्रकार अगर निष्काम कर्म में कर्तापन का भाव न हो तो वे अकर्म हो जाते हैं | सभी प्रकार के कर्मों का फल अवश्यम्भावी है | उनके फल को भोगने के लिए अनेकों योनियों में जन्म लेते हुए भटकना पड़ता है | निष्काम कर्म, सकाम कर्म और विकर्म का फल उच्च, मध्यम और निम्न स्तर का प्राप्त होता है जबकि अकर्म फल दायक नहीं होते हैं | मनुष्य जीवन में विभिन्न प्रकार के कर्मों को अकर्म में कैसे परिवर्तित कर सकते हैं, गीता में इसका निरूपण किया गया है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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