Friday, February 10, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 37

गुण-कर्म विज्ञान – 37
           सकाम और निष्काम कर्म, दोनों में ही मन और बुद्धि की भूमिका होती है | हालाँकि मन से परे (Superior) और सूक्ष्म बुद्धि है और बुद्धि का प्रभाव मन पर सदैव बना रहता है | परन्तु मन का जो भाग शरीर के साथ संलग्न (Attached) है वह बुद्धि को प्रभावित कर अपने अधीन कर सकता है | केवल अधीन (Supersede) कर ही नहीं सकता परन्तु प्रायः बुद्धि को अपने अधीन कर ही लेता है | जो कर्म मन के बुद्धि पर नियंत्रण (Control) स्थापित कर लेने के कारण होते है, प्रायः वे सभी सकाम-कर्म होते हैं | जो कर्म बुद्धि द्वारा मन को नियंत्रण में लेकर मन के माध्यम से करवाए जाते हैं, वे प्रायः निष्काम-कर्म होते हैं | बहुत मुश्किल होती है, यह जानने में कि कब मन बुद्धि पर प्रभावशाली हो गया है और कब बुद्धि मन पर | इसीलिए यह कहा जा  सकता है कि व्यक्ति सकाम और निष्काम दोनों ही प्रकार के कर्म साथ-साथ करता रहता है | दोनों प्रकार के कर्मों को करने का अनुपात (Ratio) भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकता है |  
          संसार के केंद्र में कर्म ही है और यहाँ पर सब कुछ कर्म पर ही निर्भर करता है | निष्काम कर्म का फल भी मिलता है परन्तु यह फल तत्काल पुनर्जन्म होकर नहीं मिलता बल्कि उच्च लोक में कुछ समय जाकर आनन्द दिलाता है और इन कर्मों का फल भोगकर पुनः नया जन्म लेना पड़ता है | जब हम निष्काम कर्म करते हुए कर्तापन का त्याग कर देते हैं तब ऐसे निष्काम-कर्म प्रायः फल नहीं देते हैं और वे अकर्म बन जाते हैं | सकाम-कर्म या तो फल वर्तमान जीवन में देते हैं अथवा नए जन्म और नए शरीर में | इस प्रकार सकाम-कर्म को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं | जो इस जीवन में ही फल दे देते हैं, वे काम्य कर्म (Desirable acts) कहलाते हैं और जो सकाम-कर्म नए जन्म में जाकर फल प्रदान करते हैं, उन्हें संचित-कर्म (Accumulated acts) कहते हैं | काम्य-कर्मों के द्वारा इसी वर्तमान जीवन में फल प्राप्त हो जाने के पीछे पूर्व-जन्म के संचित कर्मों की भूमिका अवश्य ही होती है अन्यथा काम्य-कर्म करने संभव ही नहीं होंगे | कहने का अर्थ यह है कि अगर पूर्व जन्म के संचित कर्म न हो तो इस जन्म में काम्य कर्म से फल प्राप्त करना असंभव है | दूसरे शब्दों में कहूँ तो कह सकता हूँ कि पूर्व जन्म के काम्य कर्मों से फल प्राप्त करने से वंचित (Deprived) रहने के कारण से ही संचित कर्म बनते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

1 comment:

  1. डॉक्टर प्रकाश कर्मों का संचय , एक अचंभित करने वाली सच्चाई का ज्ञान प्राप्त हुआ । बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी से रूबरू हुआ । अति उत्तम ब्लॉग । सादर । साधुवाद । डाॅक्टर मुकेश राघव

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