गुण-कर्म विज्ञान -9
19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक केवल
उपरोक्त दो ही प्रकार के पदार्थ के गुण माने जाते थे | जबकि उस समय हमारे शास्त्र कहीं
आगे जाकर अणु और परमाणु की बात कह रहे थे |19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ‘पदार्थ
का आणविक सिद्धांत’ (Atomic theory of matter) सामने
आया | इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक पदार्थ की इकाई परमाणु है | एक से अधिक परमाणु
मिलकर अणु (Molecule) का निर्माण करते हैं | अणुओं से यौगिक (Compounds) का
निर्माण होता है | यौगिक में केवल एक ही
प्रकार के परमाणु रहते हैं जो आपस में रासायनिक तरीके से एक दूसरे से बंधे हुए
रहते हैं | यौगिक के बाद मिश्रण (Mixture) बनते हैं जो किन्हीं दो भिन्न प्रकार के
यौगिकों के मिलने से बनते है |
आणविक सिद्धांत के अनुसार किसी भी
पदार्थ का आधार ही अणु है और अणु का आधार ऊर्जा है | अणु परमाणुओं से बना है और
परमाणु के केंद्र में धन आवेश वाले प्रोटोन होते हैं | इस केंद्र के चारों और
इलेक्ट्रोन परिक्रमा करते हैं जिसके कारण एक विद्युत्-चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण
हो जाता है, जो परमाणु में समाहित ऊर्जा का कारण है | यह सिद्धांत कहता है कि यह
ऊर्जा विद्युत के रूप में है जो पदार्थ के रासायनिक और भौतिक गुणों का भी निर्माण
करती है | इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि जो भी ऊर्जा पदार्थ में निहित है, वह
इस विद्युतीय ऊर्जा के रूप में ही है | पदार्थ की इकाई परमाणु के कृत्रिम विखंडन
से यह ऊर्जा प्रकट हो जाती है अन्यथा प्राकृतिक तौर से यह ऊर्जा प्रत्येक पदार्थ में
उसके तीनों गुणों (भौतिक, रासायनिक और विद्युत् गुण) के रूप से विद्यमान रहते हुए केवल
विभिन्न प्रकार की क्रियाएं संपन्न करती रहती है |
पदार्थ का यह आणविक सिद्धांत कहता है कि
प्रत्येक अणु ऊर्जा का विशाल भंडार है | इस ऊर्जा का कई कार्यों के लिए उपयोग किया
जा सकता है | ऊर्जा कभी समाप्त नहीं की जा सकती, केवल रूप बदल लेती है | ऊर्जा से
पदार्थ बना और पदार्थ से शरीर | प्रत्येक शरीर ऊर्जा मय है, चाहे वह शरीर किसी भी
प्राणी का हो | विभिन्न शरीरों में एक सी ही ऊर्जा निहित है | ऊर्जा से ही पञ्च
तत्व हैं, उसी से मन है और उसी से बुद्धि | समस्त गुण भी ऊर्जा से है और सभी कर्म
भी ऊर्जा से ही होने संभव है | अतः विभिन्न प्राणी समुदायों में भिन्नता देखना अनुचित
है | गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि
हस्तिनि |
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताःसमदर्शिनः
|| गीता-5/18 ||
ज्ञानी
जन विद्या और विनय युक्त ब्राह्मण तथा गाय, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी होते
हैं अर्थात ज्ञानी इन सब को समान रूप से देखता है | इस श्लोक का भावार्थ है कि सभी
में उस एक परमात्मा की ही ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है | व्यवहार रूप से हम इनमें भिन्नता
कर सकते हैं परन्तु सूक्ष्म रूप से, ऊर्जा के स्तर पर जाकर देखें तो कोई विषमता दिखाई
नहीं देती है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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