Sunday, January 29, 2017

गुण-कर्म विज्ञान -25

गुण-कर्म विज्ञान – 25
         जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया जा चूका है कि मन के दो भाग होते हैं-एक मुख्य मन (Mind) और दूसरा चित्त (Psyche) | मन इस भौतिक शरीर (Physical body) को नियंत्रित करता है और जबकि चित्त आत्मा (Soul) को अपने साथ बांध लेता है | चित्त आत्मा के साथ (Spirit) प्राणी के भौतिक शरीर में प्रवेश करता है, जहाँ भौतिक शरीर में विकसित मन के साथ संयुक्त हो जाता है | शरीर के जर्जर (Run down) होने पर यही चित्त अपने मूल मन से अलग होकर मृत्यु के समय आत्मा के साथ वह शरीर त्याग देता है | अगर यह जीवात्मा (चित्त सहित आत्मा, Spirit) किसी अन्य प्राणी (मनुष्य को छोड़कर) के भौतिक शरीर में प्रवेश करती है, तो यह चित्त उस शरीर से वही कर्म करवाता है, जो पूर्व जन्म के कर्मों (संचित कर्म, Accumulated act) के फल को प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं |
                                      मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जीवों में मन निष्क्रिय अवस्था में रहता है अर्थात अविकसित अथवा अर्ध विकसित (Underdeveloped) अवस्था में होता है जिससे वह नए कर्म करवाने में असहाय (Helpless) होता है | जब यह जीवात्मा (Spirit) जन्म के समय मनुष्य के भौतिक शरीर में प्रवेश करती है तो यह चित्त, गर्भावस्था (Intrauterine life) में विकसित (Developed) हुए मन के साथ संयुक्त (Adjoin) होकर शरीर से पूर्वजन्म के कर्मों के फल के लिए तो उससे कर्म करवाता ही है साथ ही साथ नए कर्मों को भी करवा सकता है | नए कर्मों को करवाना इस संसार-चक्र (Cycle of the Universe) के निरंतर घूमते रहने के लिए आवश्यक भी है | नए कर्मों से फल प्राप्त करने के लिए मृत्यु के बाद जीवात्मा को फिर किसी नए शरीर में जाना आवश्यक होगा | इस प्रकार यह संसार-चक्र अपनी गति से निरंतर चलता रहता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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