Thursday, January 5, 2017

गुण-कर्म विज्ञान -5

गुण-कर्म विज्ञान-5  
              गुण और कर्म के विज्ञान को समझने के लिए इतना सब कुछ जानना आवश्यक है | चेतन के अतिरिक्त सृष्टि में जो कुछ भी हमें अचेतन के रूप में दिखलाई पड़ता है, वह सब वास्तव में देखा जाये तो क्रियाहीन (Inactive) नहीं है | उन्हें अचेतन केवल इसलिए कहा जा सकता है कि उन सब में चित्त का अभाव है | चेतन के शरीर में चित्त की उपस्थिति रहती है जबकि अचेतन के शरीर में चित्त का अभाव होता है | चेतन और अचेतन दोनों के गुण इस जीवित शरीर में भी उपस्थित रहते हैं और कुछ न कुछ क्रियाएं भी दोनों में सतत (Continuous) चलती रहती हैं | इन सतत चलती रहने वाली क्रियाओं के कारण उनमें प्रतिक्षण (Every moment) परिवर्तन (Change) होता रहता है | इस परिवर्तनशीलता के कारण से इन्हें जड़ अथवा अपरा प्रकृति का कहा जाता है |
              चेतन के अंतर्गत फिर दो रूप आ जाते हैं- स्व-चेतन (Self conscious) और स्व-अचेतन (Self unconscious) | स्व-चेतन मनुष्य है, जबकि स्व-अचेतन मनुष्य को छोड़कर अन्य सभी जीव हैं | स्व-अचेतन वे प्राणी हैं जो स्वयं के अस्तित्व के बारे में कुछ भी नहीं जानते अर्थात स्वयं के होने से अनभिज्ञ रहते हैं, स्वयं से अनजान रहते हैं | स्व-चेतन में मनुष्य है क्योंकि वह अपने होने को जानता है, अपने होने का कारण जानता है | जो व्यक्ति मानव योनि में जन्म लेकर भी ऐसा नहीं जानता, उसे पशु तुल्य मानव कहा जाता है | सभी जीव जन्म लेते है, भोग भोगने और अंत में  मर जाने के लिए | यह सभी जीवों की मृत्यु होना भी तो एक शाश्वत सत्य है | परन्तु मनुष्य केवल भोग भोगने और मरने के लिए ही जन्म नहीं लेता बल्कि आत्म-बोध के लिए भी जन्म लेता है और इस बात को जो व्यक्ति अपने जीवन में इसको जान लेता है, वास्तव में उसी का मानव योनि में जन्म लेना सफल है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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