Tuesday, January 17, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 15

गुण-कर्म विज्ञान – 15  
कर्म और संसार-चक्र-
         विज्ञान के आधार पर हमने अब तक जो विवेचन किया है उसमें एक बात स्पष्ट तौर पर उभर कर आई है कि पदार्थ में उपस्थित गुणों के कारण ही पदार्थ में विभिन्न क्रियाएं सतत होती रहती है | भौतिक शरीर में होने वाली इन्हीं क्रियाओं को कर्म कहा जाता है | गुण और कर्म का आपस में गहरा सम्बन्ध है | गुणों से कर्म सम्पादित होते हैं और उन्हीं कर्मों से नए व भावी जीवन के गुण निर्धारित होते हैं | यह गुण और कर्मों का जो आपसी सम्बन्ध मनुष्य में है, उसे आधुनिक विज्ञान अब तक पूर्णतया स्पष्ट नहीं कर पाया है | अतः सर्वप्रथम इसी को आधार बनाकर इस चर्चा को प्रारम्भ करते हैं | इस बात का विवेचन करने पर ही स्पष्ट हो सकेगा कि हमारे शास्त्र आधुनिक विज्ञान से बहुत आगे है | गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को इस भौतिक शरीर में स्थित गुण-विभाग और कर्म-विभाग को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: |
गुणा गुणेषु: वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते || गीता-3/28||
अर्थात हे महाबाहो ! गुण विभाग और कर्म विभाग के तत्व को जानने वाला ज्ञान योगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा समझकर उनमें आसक्त नहीं होता |
            परमात्मा ने तो प्रकृति में अथाह गुण डाल दिए, आपस में क्रियाएं (Actions) करने के लिए और स्वयं दृष्टा (Viewer) बनकर बैठ गया, उन क्रियाओं में लिप्त (Indulge) नहीं हुआ | समस्त क्रियाएं जब व्यक्ति के मन के अनुसार संपन्न होने लगती है, तब वह स्वयं को उन क्रियाओं का कर्ता (Doer) मानने लगता है, ऐसे में वे क्रियाएं ही उसके कर्म (Act) बन जाती है | प्रत्येक क्रिया एक निश्चित परिणाम (Result) देती है, ऐसे में यह कर्म उस व्यक्ति के लिए फल देने वाले बन जाते हैं | यही कर्मफल मनुष्य को उस कर्म के प्रति आसक्त बना देते हैं | अगर गुण और उसकी क्रियाओं को आप अपना कर्म न माने अर्थात अपने द्वारा होना न माने तो वे सभी क्रियाएं कर्म न बनकर अकर्म (no-act) बन जाती हैं | अकर्म का अर्थ है मात्र गुणों में क्रिया का होना मानना | जब आप कर्ता हैं ही नहीं तो उन गुणों की क्रियाओं में आपकी आसक्ति (Attachment) कैसे बन सकती है ? कर्मफल के कारण क्रियाओं में आसक्ति रखना ही आपको कर्ता बनाती है | अगर आप स्वयं को कर्ता नहीं मानते हैं तो ऐसे आप भी सब कुछ करते हुए भी नहीं करते हैं | ऐसे में आप भी परमात्मा की तरह कह सकते हैं-‘न करोति न लिप्यते’ | (He is neither a doer nor going to indulge in karma.)
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

1 comment:

  1. Dhanyavad.. Aur aap bohot accha kaam kar rahe hai.. Aur aapki yeh baat ki science is repeating sanatan dharma just in other way bilkul sahi hai.. I am also doing research about cosmos with help of our religion.. Please post such things.. Let me know if i can help u..

    🙏

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