गुण-कर्म विज्ञान-3
सृष्टि की रचना (Creation
of universe)-
यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड परमात्मा के
कारण ही अस्तित्व में आ सका है और इस ब्रह्माण्ड के विस्तार का कारण भी केवल मात्र
यही परमात्मा हैं | ब्रह्माण्ड के अस्तित्व में आने से पहले भी केवल परमात्मा ही
थे, इसीलिए उन्हें अनादि (Uncreated) कहा जाता है | जो सृष्टि के प्रारम्भ में था,
वह आज भी है और भविष्य में भी वही रहेगा अर्थात वह प्रत्येक काल में उपस्थित रहता
है यानि कालातीत (Beyond the time) है | जब सृष्टि का यह चक्र समाप्त हो जायेगा तब
भी वही रहेगा और जब वह चाहेगा, ऐसी ही एक नई सृष्टि उसी के द्वारा फिर अस्तित्व
में आ जाएगी | वेद कहते हैं -“सोSकामयात बहुस्यामि” अर्थात परमात्मा ने कामना की कि
मैं एक से अनेक हो जाऊं | वेद की यह ऋचा परमात्मा में सर्वप्रथम मन के अस्तित्व में
आने की बात कहता है | कामना केवल मन में ही उठ सकती है, आत्मा अथवा शरीर में नहीं |
परमात्मा ने सर्वप्रथम मन को पैदा किया और फिर उस मन में एक कामना पैदा की कि मैं एक
से अनेक होना चाहता हूँ | यह तथ्य सत्य भी है क्योंकि बिना मन के न तो कहीं कोई संसार
है और न ही व्यक्ति | क्यों होना चाहते हैं परमात्मा एक से अनेक ?
अव्यक्त (Invisible) कभी भी न तो
अपना स्वरूप देख पाता है और न ही अकेले कोई आनंदित हो सकता है | स्वरूप को जानने
और आनंदित होने के लिए एक से अनेक का होना आवश्यक है | एक अकेला अव्यक्त हो सकता
है परन्तु व्यक्त होने के लिए कम से कम दो का होना आवश्यक है | एक तो दृश्य (View)
और दूसरा दृष्टा (Viewer) | अतः अव्यक्त आनंद तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक कि
वह व्यक्त (Visible) नहीं हो जाये | व्यक्त होने के लिए सृष्टि का निर्माण करना
आवश्यक था | अतः कहा जा सकता है कि परमात्मा द्वारा सृष्टि का निर्माण अपने मन की
कामना को पूरा करने के लिए किया गया | परमात्मा से मन और फिर मन से सृष्टि का
स्फुरण (Ignition) हुआ | सृष्टि में इस प्रकृति से पदार्थ (Matter) और पदार्थ से
प्राणियों की देह (Physical body) का निर्माण हुआ | इतना होने के बाद भी जब
परमात्मा को आनन्द प्राप्त नहीं हो सका, वह अपने स्वरूप को नहीं पहचान सका, तब प्राणियों
की देह में चेतना (Consciousness) लाना आवश्यक हो गया | चेतना लाने के लिए मन से, उसी के दूसरे रूप
चित्त का निर्माण करना पड़ा तथा स्वयं आत्मा (Soul) बनकर दोनों को एक साथ संयुक्त किया
| दोनों के संयोजन से जीवात्मा (Spirit) का निर्माण हुआ और इस जीवात्मा को प्राणियों
के भौतिक शरीर में प्रवेश कराया गया | इस प्रकार सृष्टि में सर्वप्रथम सजीव का
पदार्पण हुआ | उस एक जीव से धीरे-धीरे उन्नत होते हुए आज का मनुष्य बना |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
||हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment