गुण-कर्म विज्ञान –
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मन और कर्म-
मन की सक्रिय उपस्थिति (Active presence) और मन की निष्क्रिय उपस्थिति (Passive presence) ये दो ही मनुष्य और अन्य जीवों में भेद (Difference) का मुख्य आधार है | मन की सक्रियता से तात्पर्य
है मन में जो आये अथवा मन जो चाहे उसके अनुसार शरीर का कार्य करना | मन की
सक्रियता ने ही व्यक्ति को ‘मनुष्य’ नाम प्रदान किया है | जिस व्यक्ति में मन भी क्रियाशील
(Active) नहीं होता उसको पशु समान माना जाता है और वह मनुष्य
मानसिक रोगी (Psychic)
की श्रेणी में आता
है | जिस मनुष्य ने अपने मन को नियंत्रित (Control) कर लिया
है, वह ‘योगी’ हो जाता है | मन का क्रियाशील न होना तथा मन की क्रियाशीलता को
नियंत्रण में रखना, सतही रूप (Superficially) से
देखने में एक समान प्रतीत होते हैं | दोनों ही स्थितियों में मन की क्रियाशीलता ही
महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित होती है, परन्तु दोनों परिस्थितियों में मनुष्य के व्यक्तित्व
(Personality) में बहुत बड़ा अंतर होता है | इन दो स्थितियों में
अंतर को न समझने के कारण आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को सांसारिक
व्यक्ति प्रायः मनोरोगी समझ बैठते हैं | मन को नियंत्रण में रखने वाला संसार के
लिए एक मनोरोगी हो सकता है परन्तु वास्तविकता में वह परमात्मा के चिंतन में सदैव
लगा होने के कारण वैसा आभासित हो सकता है | यह ठीक वैसे ही है जैसे अनिद्रा रोग (Insomnia) का होना अथवा नींद को जीत लेना (गुडाकेश) control on sleep,;दोनों
को एक समान समझ लेना | जबकि दोनों में बहुत बड़ा अंतर है |
गीता इसी मन को स्पष्ट करते हुए कहती है कि -
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः
परं मनः |
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे:
परतस्तु सः || गीता-3/42 ||
अर्थात इन्द्रियों
को स्थूल शरीर से श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं | इन इन्द्रियों से सूक्ष्म मन
है; मन से सूक्ष्म बुद्धि है और बुद्धि से अत्यंत सूक्ष्म है, वह आत्मा है |
स्थूल भौतिक शरीर से
इन्द्रियां श्रेष्ठ (Superior) है अर्थात
इन्द्रियों के कारण ही शरीर के द्वारा कार्य सिद्ध हो सकते हैं | इन्द्रियां मन के
अधीन हैं | मन से श्रेष्ठ बुद्धि और सबसे श्रेष्ठ आत्मा है | कहने का अर्थ यह है
कि आत्मा के कारण ही इस शरीर का मूल्य है अन्यथा इस शरीर के होने का कोई महत्त्व
नहीं है | मन तो केवल इस शरीर से कार्य लेने का माध्यम मात्र है | अतः मन से उपयुक्त
(Appropriate) कार्य लेने के लिए इसको नियंत्रण में रखना आवश्यक
है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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