गुण-कर्म विज्ञान -13
अभी तक हमने संक्षेप में यह जाना
है कि भौतिक और रासायनिक गुणों के साथ-साथ पदार्थ में एक आणविक गुण भी है, जिसे विद्युतीय
गुण भी कह सकते हैं | इतना जान लेने के बाद हम समझ सकते हैं कि प्रत्येक पदार्थ त्रिगुणात्मक
प्रकृति के गुणों से ओतप्रोत है और साथ ही उस पदार्थ के गुणों में क्रियाएं भी
निर्बाध गति से सतत चलती रहती है | भौतिक शरीर भी पदार्थ है और उसमें हो रही इस
प्रकार की समस्त क्रियाएं, कर्म कहलाती हैं | पदार्थ से भौतिक शरीर का निर्माण किस
प्रकार होता है, इसको स्पष्ट करते हुए भगवान श्री कृष्ण गीता में अर्जुन को कह रहे
हैं-
मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् |
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते || गीता-9/10||
अर्थात हे अर्जुन !
मेरी अध्यक्षता में, मेरे से ही उत्पन्न यह प्रकृति चराचर सहित समस्त ब्रह्माण्ड
को रचती है और इस के कारण ही संसार चक्र निरंतर घूम रहा है |
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि
प्रकृति से ही समस्त चर-अचर उत्पन्न होते हैं | प्रकृति ऊर्जा से है और पदार्थ का
आधार भी ऊर्जा है | ऊर्जा का कारण परमपिता है | इस प्रकार परमात्मा ही ऊर्जा, प्रकृति,
पदार्थ और भौतिक शरीर का आधार हुआ | शरीर की ऊर्जा क्षय हो जाने पर यह शरीर नष्ट हो
जाता है और एक बार फिर निर्जीव पदार्थों में परिवर्तित हो जाता है | कुछ समय पश्चात
यही पदार्थ पुनः संगठित होकर एक नए शरीर का निर्माण करते हैं | इस प्रकार इस
प्रकृति के कारण विभिन्न प्रकार के चर और अचर बनते मिटते रहते हैं और संसार-चक्र अपनी
गति से निरंतर चलायमान बना रहता है | एक अवसर ऐसा भी आता है, जब समस्त प्रकृति भी
परमात्मा में प्रवेश कर जाती है और फिर एक बार पुनः नई सृष्टि की रचना संभव हो
पाती है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment