Saturday, January 14, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 14

गुण-कर्म विज्ञान-14
     इस सृष्टि-चक्र को स्पष्ट गीता में करते हुए भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं-
             सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् |
             कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ||गीता-9/7||
अर्थात हे अर्जुन ! कल्पों के अंत में सभी भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात प्रकृति में लीन हो जाते हैं और कल्पों के प्रारम्भ में उनको मैं फिर रचता हूँ |
            विज्ञान कहता है कि हमारी सृष्टि कृष्ण-विवर (Black hole) से उत्पन्न हुई है और समय आने पर पुनः कृष्ण-विवर (Black hole) में समा जाएगी | इसके बाद पुनः सृष्टि की रचना कब होगी; होगी अथवा नहीं होगी, विज्ञान इस बारे में अभी तक कुछ भी नहीं कह रहा है | परन्तु यह बात तो एक कल्प की ही हुई | इस कल्प की सृष्टि के उत्पन्न होने की विज्ञान जो बात कहता है वही बात गीता भी कहती है | गीता केवल एक कल्प की बात नहीं करती है बल्कि अनेकों कल्पों की बात कहती है जबकि आधुनिक विज्ञान अभी तक आज के इस कल्प को ही जानने का प्रयास कर रहा है | हाँ, इस एक कल्प की दोनों की बातों में समानता अवश्य है |
             इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रकृति के पदार्थों से ही सृष्टि का चक्र घूम रहा है | यह चक्र किस प्रकार और क्यों घूम रहा है, इस बात का विज्ञान के पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है | अतः आधुनिक विज्ञान को यहीं पर छोड़, पुनः शास्त्रों की तरफ लौट चलते हैं, जो इस संसार-चक्र के निर्बाध चलते रहने के लिए केवल मात्र कर्म को ही महत्वपूर्ण मानते है | कर्म का आधार प्रकृति के गुण है और प्रकृति का आधार परमात्मा है | इस प्रकार सभी कर्म का कारण भी परमात्मा हुए | फिर भी परमात्मा कहते हैं-‘न करोति न लिप्यते’, ऐसा कैसे हो सकता है ? आइये, इस यात्रा पर साथ-साथ आगे बढ़ते हैं और इसे जानने का प्रयास करते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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