गुण-कर्म विज्ञान - 6
मनुष्य और अन्य प्राणियों के इस अंतर को स्पष्ट करने के लिए मनुष्य शरीर को थोडा और अधिक गहराई से समझना आवश्यक है | यह आवश्यक इसलिए भी हो जाता है क्योंकि विज्ञान को यह मनुष्य, उसके भौतिक शरीर के साथ-साथ मन, चित्त और आत्मा के रूप में दिखाई न देकर केवल एक इकाई, केवल भौतिक शरीर के रूप में ही दिखाई देता है | हमारे शास्त्र इस शरीर की विज्ञान से भी उच्च स्तर पर जाकर व्याख्या करते हैं | तैत्तिरीयोपनिषद की ब्रह्मानन्द-वल्ली में इस मनुष्य जीव को पाँच कोषों (जिन्हें शरीर भी कहा जाता है ) में विभाजित किया है, जो बाहर से भीतर की ओर निम्न प्रकार से हैं |
मनुष्य और अन्य प्राणियों के इस अंतर को स्पष्ट करने के लिए मनुष्य शरीर को थोडा और अधिक गहराई से समझना आवश्यक है | यह आवश्यक इसलिए भी हो जाता है क्योंकि विज्ञान को यह मनुष्य, उसके भौतिक शरीर के साथ-साथ मन, चित्त और आत्मा के रूप में दिखाई न देकर केवल एक इकाई, केवल भौतिक शरीर के रूप में ही दिखाई देता है | हमारे शास्त्र इस शरीर की विज्ञान से भी उच्च स्तर पर जाकर व्याख्या करते हैं | तैत्तिरीयोपनिषद की ब्रह्मानन्द-वल्ली में इस मनुष्य जीव को पाँच कोषों (जिन्हें शरीर भी कहा जाता है ) में विभाजित किया है, जो बाहर से भीतर की ओर निम्न प्रकार से हैं |
1.अन्नमय कोष -
त्वचा से अस्थि (Skin to bone) पर्यंत समस्त भौतिक शरीर अन्नमय कोष है | यह मनुष्य
सहित सभी प्राणियों का होता है |
2.प्राणमय कोष - इसमें
पञ्च प्राण आते हैं - प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान | यह भी मनुष्य सहित सभी
प्राणियों का होता है |
3.मनोमय कोष - इसमें
मन, अहंकार और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ आती हैं | यह कोष भी सभी प्राणियों में
उपस्थित होता है |
4.विज्ञानमय कोष -
इसमें बुद्धि और पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ आती है | यह कोष मनुष्य के अतिरिक्त अन्य
प्राणियों में निष्क्रिय (Inactive) अवस्था में रहता है |
5.आनंदमय कोष – यह चेतना
का वह स्तर है, जिसमें मनुष्य को अपने वास्तविक स्तर की अनुभूति सतत होती रहती है |
इस अनुभूति को ही आत्म-बोध कहा जाता है | आत्म-बोध होने के बाद व्यक्ति सदैव ही
आनंदमय रहता है | यह परमात्मा के एकदम निकट होने का स्तर है | यह कोष भी मनुष्य के
अतिरिक्त अन्य प्राणियों में निष्क्रिय (Inactive) अवस्था में रहता है |
आत्मा इन पांचों कोषों से अलग है | यह मनुष्य
सहित सभी जीवों के कोषों के केंद्र में रहती है अर्थात आनंदमय कोष के भी भीतर | अन्य
शब्दों में यह कहा जा सकता है कि उपरोक्त पांचों
कोष आत्मा के आवरण (Covering) है | आत्मा इन पांचों कोषों का केंद्र भी है और इनसे
सम्बंधित भी है | भौतिक शरीर के अंतर्गत अन्नमय और प्राणमय कोष आते हैं, जबकि
चित्त में शेष बचे तीन कोष अर्थात मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोष आ जाते हैं |
मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों के चित्त में केवल मनोमय कोष ही सक्रिय अवस्था
में रहता है, शेष दो कोष, विज्ञान और आनंदमय कोष सुषुप्त अवस्था में रहते हैं | ये
दोनों कोष तभी सक्रिय होंगे, जब जीवात्मा को कालांतर में मनुष्य शरीर पुनः प्राप्त
होगा |
प्रथम दो कोष शरीर की मृत्यु के समय यहीं
इस संसार में मृत शरीर के साथ ही पीछे रह जाते हैं | शेष तीनों कोष चित्त के साथ संयोजन
कर आत्मा के साथ अंतरिक्ष में चले जाते हैं, जहाँ पर वे पुनः एक अन्नमय और प्राणमय
शरीर की तलाश करते हैं | तलाश पूरी होते ही वे नए शरीर में प्रवेश कर पुनः इस
संसार में जन्म ले लेते हैं |
इस प्रकार मनुष्य व अन्य प्राणियों के
शरीर तथा चेतन-अचेतन के बारे में अल्प जानकारी को आत्मसात कर ‘सृष्टि की रचना’ की
यात्रा पर आगे बढ़ते हैं | प्रकृति के अंतर्गत सृष्टि का प्रारम्भ पदार्थ के निर्माण
के साथ हुआ था | विभिन्न पदार्थों से ही भौतिक शरीर का निर्माण होता है | अतः
सर्वप्रथम हमें पदार्थ (matter) को जानना आवश्यक है |
कल से पदार्थ के
बारे में |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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