Friday, January 6, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 6

गुण-कर्म विज्ञान - 6
                मनुष्य और अन्य प्राणियों के इस अंतर को स्पष्ट करने के लिए मनुष्य शरीर को थोडा और अधिक गहराई से समझना आवश्यक है | यह आवश्यक इसलिए भी हो जाता है क्योंकि विज्ञान को यह मनुष्य, उसके भौतिक शरीर के साथ-साथ मन, चित्त और आत्मा के रूप में दिखाई न देकर केवल एक इकाई, केवल भौतिक शरीर के रूप में ही दिखाई देता है | हमारे शास्त्र इस शरीर की विज्ञान से भी उच्च स्तर पर जाकर व्याख्या करते हैं | तैत्तिरीयोपनिषद की ब्रह्मानन्द-वल्ली में इस मनुष्य जीव को पाँच कोषों (जिन्हें शरीर भी कहा जाता है ) में विभाजित किया है, जो बाहर से भीतर की ओर निम्न प्रकार से हैं |
1.अन्नमय कोष - त्वचा से अस्थि (Skin to bone) पर्यंत समस्त भौतिक शरीर अन्नमय कोष है | यह मनुष्य सहित सभी प्राणियों का होता है |
2.प्राणमय कोष - इसमें पञ्च प्राण आते हैं - प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान | यह भी मनुष्य सहित सभी प्राणियों का होता है |
3.मनोमय कोष - इसमें मन, अहंकार और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ आती हैं | यह कोष भी सभी प्राणियों में उपस्थित होता है |
4.विज्ञानमय कोष - इसमें बुद्धि और पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ आती है | यह कोष मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों में निष्क्रिय (Inactive) अवस्था में रहता है |
5.आनंदमय कोष – यह चेतना का वह स्तर है, जिसमें मनुष्य को अपने वास्तविक स्तर की अनुभूति सतत होती रहती है | इस अनुभूति को ही आत्म-बोध कहा जाता है | आत्म-बोध होने के बाद व्यक्ति सदैव ही आनंदमय रहता है | यह परमात्मा के एकदम निकट होने का स्तर है | यह कोष भी मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों में निष्क्रिय (Inactive) अवस्था में रहता है |
         आत्मा इन पांचों कोषों से अलग है | यह मनुष्य सहित सभी जीवों के कोषों के केंद्र में रहती है अर्थात आनंदमय कोष के भी भीतर | अन्य शब्दों  में यह कहा जा सकता है कि उपरोक्त पांचों कोष आत्मा के आवरण (Covering) है | आत्मा इन पांचों कोषों का केंद्र भी है और इनसे सम्बंधित भी है | भौतिक शरीर के अंतर्गत अन्नमय और प्राणमय कोष आते हैं, जबकि चित्त में शेष बचे तीन कोष अर्थात मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोष आ जाते हैं | मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों के चित्त में केवल मनोमय कोष ही सक्रिय अवस्था में रहता है, शेष दो कोष, विज्ञान और आनंदमय कोष सुषुप्त अवस्था में रहते हैं | ये दोनों कोष तभी सक्रिय होंगे, जब जीवात्मा को कालांतर में मनुष्य शरीर पुनः प्राप्त होगा |
       प्रथम दो कोष शरीर की मृत्यु के समय यहीं इस संसार में मृत शरीर के साथ ही पीछे रह जाते हैं | शेष तीनों कोष चित्त के साथ संयोजन कर आत्मा के साथ अंतरिक्ष में चले जाते हैं, जहाँ पर वे पुनः एक अन्नमय और प्राणमय शरीर की तलाश करते हैं | तलाश पूरी होते ही वे नए शरीर में प्रवेश कर पुनः इस संसार में जन्म ले लेते हैं |
           इस प्रकार मनुष्य व अन्य प्राणियों के शरीर तथा चेतन-अचेतन के बारे में अल्प जानकारी को आत्मसात कर ‘सृष्टि की रचना’ की यात्रा पर आगे बढ़ते हैं | प्रकृति के अंतर्गत सृष्टि का प्रारम्भ पदार्थ के निर्माण के साथ हुआ था | विभिन्न पदार्थों से ही भौतिक शरीर का निर्माण होता है | अतः सर्वप्रथम हमें पदार्थ (matter) को जानना आवश्यक है |
कल से पदार्थ के बारे में |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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