Thursday, January 26, 2017

गुण-कर्म विज्ञान - 22

गुण-कर्म विज्ञान – 22
               हमारे शास्त्र इस तत्व के बारे में स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जिसने भी प्रकृति को बनाया है, जिससे यह शरीर बना है, तथा जिसने भी इस शरीर में प्रकृति के तीनों गुण भरे हैं, जब वह देखता है कि यह शरीर अभी भी निष्क्रिय है, तो वह स्वयं उसमें प्रवेश करता है |     
    चित्तेन हृदयं चेत्यः क्षेत्रज्ञ: प्रविशाद्यदा |
    विराट् तदैव पुरुषः सलिलादुदतिष्ठत || भागवत-3/26/70||
अर्थात जब चित्त के अधिष्ठाता क्षेत्रज्ञ ने चित्त के सहित ह्रदय में प्रवेश किया तब विराट पुरुष उसी समय जल से उठ खड़ा हुआ |
       चित्त के अधिष्ठाता क्षेत्रज्ञ जब पञ्च तत्व रचित अचेतन शरीर में प्रवेश करता है तभी वह तत्काल ही सक्रिय होकर उठ खड़ा होता है | माँ के गर्भ में शिशु जल (Amniotic fluid) में तैरता रहता है, इसीलिए इस श्लोक में ऐसा कहा गया है | क्षेत्रज्ञ के उस शिशु के शरीर में प्रवेश करते ही वह उस जल से बाहर निकलकर इस संसार में जन्म ले लेता है |
         गीता में क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग नामक अध्याय में भी भगवान श्री कृष्ण इसी तत्व को अव्यक्त अर्थात मूल प्रकृति के नाम से कहते हैं-
      महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च |
      इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: ||गीता-13/5||
अर्थात पाँच महाभूत (भूमि, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश) दस इन्द्रियां, बुद्धि, अहंकार, एक मन, पाँच इन्द्रियों के विषय (शब्द, स्पर्श,  रूप, रस और गंध) तथा अव्यक्त मूल प्रकृति (23+1) | इस श्लोक में भगवान ने चेतन शरीर में उपस्थित रहने वाले सभी तत्व बताये हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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