Tuesday, January 10, 2017

गुण-कर्म विज्ञान-10

गुण-कर्म विज्ञान-10   
पदार्थ और ऊर्जा का सम्बन्ध-
            आणविक सिद्धांत ने ऊर्जा को ही पदार्थ का आधार माना है | महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के बाद विज्ञान अब मानने लगा है कि पदार्थ और ऊर्जा का आपस में अन्तरंग सम्बन्ध है | आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of relativity) प्रतिपादित किया था | उसके अनुसार एक पदार्थ की मात्रा जो ग्राम में ली जाती है उसको प्रकाश की गति किलोमीटर प्रति सैकिंड के वर्ग से गुणा कर दिया जाये तो जो परिणाम मिलता है, उतनी ऊर्जा उस पदार्थ में सदैव उपस्थित रहती है | इसी सिद्धांत के आधार पर आणविक ऊर्जा (Atomic energy) की विशालता का अनुमान लगा था | आज इसी ऊर्जा का उपयोग विद्युत बनाने के लिए किया जा रहा है और दुरुपयोग विभिन्न आणविक विनाश शस्त्रों के रूप में संसार के सामने है | पदार्थ से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है और अगर इसी सिद्धांत को केंद्र में रखते हुए इसकी विपरीत दिशा में सोचा जाये तो इतनी ही ऊर्जा से पदार्थ का निर्माण भी किया जा सकता है | विज्ञान आज कह रहा है कि हाँ, सृष्टि का निर्माण इसी प्रकार हुआ है | यह सब आधुनिक विज्ञान जो आज कह रहा है, हमारे ऋषि सहस्रों वर्ष पहले ही घोषित कर चुके थे कि इस संसार का निर्माण केवल ऊर्जा से ही हुआ है | गीता का 10/20 श्लोक यही तो कह रहा है कि समस्त भूतों का आदि भी मैं हूँ, मध्य भी मैं हूँ और अंत भी मैं ही हूँ | यह ‘मैं’ ही आज के विज्ञान की ऊर्जा है, यह ‘मैं’ ही हमारा परमात्मा है |
    गीता में भगवान श्री कृष्ण इसी आणविक सिद्धांत के बारे में कहते हैं-
             अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् |
             भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च || गीता-13/16 ||
       अर्थात वह परमात्मा अविभक्त है परन्तु सभी चराचर भूतों में स्थित होने के कारण विभक्त सा प्रतीत हो रहा है | जानने वाली मुख्य बात यह है कि वह परमात्मा ही अणु के रूप में है, जो भूतों को उत्पन्न करने के लिए ब्रह्मा के रूप में (प्रभविष्णु, प्रभव+ईश्+अणु) सामने आता है और संहार करने के लिए रुद्र रूप धारण कर लेता है (ग्रसिष्णु,ग्रस+ईश्+अणु) | भूतों का भरण-पोषण (भूतभर्तृ) भी इसी अणु के माध्यम से विभिन्न पदार्थों के द्वारा संभव होता है |
          आज हम विज्ञान के दर्पण में देखें तो यही बात स्पष्ट हो जाती है | अणु से ही ऊर्जा निकलकर सभी कार्य संभव बनाती है और पुनः ऊर्जा अणु में ही आकर सिमट जाती है | ऊर्जा से अणु, अणुओं से पदार्थ और पदार्थ से आणविक ऊर्जा, इस प्रकार यह सृष्टि-चक्र सदैव गतिमान बना रहता है | ऊर्जा से पदार्थ व विभिन्न प्राणियों का निर्माण (ब्रह्मा, प्रभविष्णु), पदार्थ से संसार और उसमें अवस्थित भूतों का भरण-पोषण और फिर पदार्थ का विखंडन होकर पुनः अणु में परिवर्तन (ग्रसिष्णु) अर्थात भौतिक देह का समापन, इस प्रकार सृष्टि में भूतों का यह जीवन-चक्र सदैव चलता रहता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment