गुण-कर्म विज्ञान –
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कर्म-विभाग (Department of acts)-
शरीर के गुण-विभाग से अधिक महत्त्व पूर्ण
है, कर्म-विभाग | इसका कारण यह है कि अकेला पदार्थ का एक गुण किसी कर्म को
सम्पादित नहीं करवा सकता | तीनों गुण आपस में मिलकर ही किसी कर्म को करवा सकते हैं
| उदाहरण स्वरूप हम गंध (Smell) को ही
लेते हैं | गंध का ज्ञान हमें नासिका के द्वारा होता है | किसी गंध का विश्लेषण
करने के लिए सर्वप्रथम भौतिक गुण का सहारा लेते हुए नासिका के छिद्र (Nasal opening) बड़े हो जाते हैं और नासिका को हम जिधर से गंध आ
रही है उस दिशा की ओर कर लेते हैं | वह गंध नासिका में प्रवेश कर उसकी झिल्ली (Mucous membrane) में उपस्थित रसायन (Chemical) में घुल जाती है | उस रसायन से विद्युतीय संकेत
मस्तिष्क तक पहुंचा दिए जाते हैं जहाँ पर इस गंध का विश्लेषण (Analysis of smell) किया जाता है | इस प्रकार पदार्थ के तीनों गुणों
को बरतते हुए अर्थात उपयोग में लेते हुए गंध को पहचानने (Identify) की क्रिया संपन्न होती है | जब गंध सुगंध अथवा
दुर्गन्ध सिद्ध होती है तो मस्तिष्क में यह आंकड़ों (data) के रूप
में संग्रहित (Store)
कर ली जाती है, जो
भविष्य में तुलनात्मक (Comparison) रूप से
गंध का विश्लेषण करने में सहायक सिद्ध होती है |
स्वाद (Taste) के
ज्ञान के बारे में भी लगभग ऐसी ही प्रक्रिया संपन्न होती है | इसमें भोजन को लार (Saliva) जो कि एक रसायन है, के साथ घुलकर स्वाद-कलिकाओं (Taste buds) के माध्यम से संकेत रूप में मस्तिष्क तक पहुंचाए
जाते हैं, जहाँ पर विशेषण करते हुए मस्तिष्क वास्तविक स्वाद का ज्ञान करवाता है |
लगभग यही प्रक्रिया शब्दों (Words) को सुनने
में, स्पर्श (Touch)
का ज्ञान करने में
तथा दृश्य (View)
दिखलाने में संपन्न
होती है | अतः यह स्पष्ट है कि पदार्थ के गुणों के आपस में सहयोग कर ही कर्म
सम्पादित किये जा सकते है | इसी कारण से शरीर का यह विभाग गुण-विभाग से अलग कर्म-विभाग
कहलाता है |
क्रिया और कर्म का अंतर स्पष्ट करने
के लिए चेतन को थोडा और अधिक विस्तार से जानना आवश्यक है | जब तीनों प्रकार के गुण
चेतन और अचेतन, दोनों में विद्यमान है, तो फिर अचेतन जैसी ही क्रिया चेतन में होते
ही कर्म कैसे बन जाती है ?
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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