गुण-कर्म विज्ञान –
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गुण-विभाग-(Department of material
properties)-
सनातन-धर्म शास्त्रों के अनुसार गुण विभाग
के अंतर्गत अष्टधा प्रकृति आती है जिसमें पाँच भौतिक तत्वों से पदार्थ का निर्माण
होता है | विभिन्न प्रकार के पदार्थों से ही इस भौतिक शरीर का निर्माण होता है |
शरीर के विभिन्न अंग भी इन्हीं पदार्थों से बनते हैं | आधुनिक विज्ञान के अनुसार पदार्थों
से बना होने के कारण शरीर में भी पदार्थ के तीनों गुण उपस्थित रहते हैं- भौतिक गुण
(Physical
properties), रासायनिक गुण (Chemical properties) और आणविक अथवा विद्युतीय गुण (Electrical properties) |
पदार्थ के भौतिक गुण के कारण दसों
इन्द्रियों (Organs
of senses) का निर्माण होता है |
अतः यह कहा जा सकता है कि भौतिक गुण इस शरीर में इन्द्रियों से कार्य सम्पादित कराने
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (Sense organs for knowledge)
और पाँच
कर्मेन्द्रियों (Sense
organs for acts) के कारण भौतिक शरीर अपना निश्चित आकार (Shape) ग्रहण करता है | पदार्थ के भौतिक गुण के कारण ही कर्मेन्द्रियाँ
अपना आकार और दिशा (Shape and directions) बदलते
हुए विभिन्न कर्म को सम्पादित करती हैं | चलना, वस्तु को पकड़ना, दौड़ना, मल-मूत्र
विसर्जन आदि कर्म भौतिक गुणों के कारण ही संभव होते हैं | रासायनिक गुणों के कारण भोजन
का पाचन
(Digestion) , मांस-पेशियों की
सक्रियता (Activity
of muscles) , मूत्र के माध्यम
से उत्सर्जित होने वाले तत्वों का निर्धारण करना (Excretion of wastage) , विभिन्न हार्मोन्स (Hormones) बनाकर शारीरिक विकास (Development) को गति देना आदि कर्म संपन्न होते हैं | इसी
प्रकार विद्युतीय गुणों के कारण ज्ञानेन्द्रियों से संकेत (Electrical signals) मस्तिष्क (Brain) तक
पहुँच कर, सामने उपस्थित वातावरण(Environment), स्वाद (Taste), शब्द (Hearing), गंध (Smell) और
दृश्य (View) का ज्ञान कराते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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