गुण-कर्म विज्ञान-4
इस प्रकार हम देखते हैं कि परमात्मा
और उनका मन, क्रमशः आत्मा तथा चित्त बनकर प्राणियों के शरीर को चेतन (Conscious) करता
है | परमात्मा के इस अंश को आत्मा (Soul) और परमात्मा के मन के अंश को चित्त अथवा
जीव कहा जाता है | दोनों के एक साथ संलग्न होने से परमात्मा का यह अंश ‘जीवात्मा’ (Spirit)
कहा जाता है | गीता में भगवान श्री कृष्ण इस बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः
|
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव
च ||गीता-10/20||
अर्थात हे अर्जुन !
मैं सब भूतों के ह्रदय में स्थित उसका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य
और अंत भी मैं ही हूँ |
समस्त प्राणियों में आत्मा बनकर ‘मैं’
ही बैठा हुआ हूँ | भूतों अर्थात प्राणियों का प्रारम्भ अर्थात शरीर के निर्माण में
प्रयुक्त पदार्थ भी ‘मैं’ ही हूँ अर्थात यह भौतिक शरीर का कारण भी ‘मैं’ ही हूँ,
मध्य अर्थात इस शरीर में जो भी क्रियाएं अथवा गतिविधियाँ हो रही है, वे सब भी मेरे
कारण ही है और प्राणियों के शरीर का जब समापन होता है, उसका कारण भी ‘मैं’ ही हूँ |
परमात्मा स्पष्ट कर रहे हैं कि सभी अचेतन (Unconscious) भी ‘मैं’ हूँ, जिसके
अंतर्गत समस्त पदार्थ और उनसे बने प्राणियों के शरीर आ जाते हैं | चेतन (Conscious)
भी ‘मैं’ ही हूँ और शरीर के काल कलवित (Time barred) हो जाने के बाद भी ‘मैं’ ही
रहता हूँ | इस प्रकार परमात्मा की इस सृष्टि में समस्त चेतन और अचेतन आ जाते हैं |
चेतन प्राणी तो चर (Motile) कहलाते हैं और अचेतन, अचर (Nonmotile or stable) कहलाते
हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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