गुण-कर्म
विज्ञान-11
विज्ञान से भी बहुत आगे बढ़कर हमारे
शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा केवल ऊर्जा मात्र ही नहीं है बल्कि ऊर्जा भी उसके
कारण से है | प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्रे में जो शक्ति/दुर्गा की उपासना होती
है, वह परमात्मा के मातृरूप की पूजा ही है | परमात्मा का यह मातृरूप ऊर्जा ही है |
ऊर्जा को शक्ति भी कहा जाता है | विज्ञान ऊर्जा से आगे बढ़कर परमात्मा तक नहीं
पहुँच पाया है परन्तु हमारे ऋषि इससे भी आगे जाकर कहते हैं कि ऊर्जा भी कहीं से विकसित
हुई है और जहाँ से ऊर्जा का आगमन हुआ है वह अक्षर भी है और अविज्ञेय भी | उस अक्षर
और अविज्ञेय का नाम ही परमात्मा है |
विज्ञान के अनुसार परमाणु के केंद्र में
धनात्मक आवेश वाले प्रोटोन रहते हैं और ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रोन उस केंद्र के
चारों और परिक्रमा करते हैं | धनात्मक आवेश वाले प्रोटोन का एक साथ बंधे रहना
असंभव है क्योंकि नियमानुसार समान आवेश वाले एक दूसरे को धक्का देकर दूर भागते हैं
| ऐसे में इन समान आवेश वाले प्रोटोन को बांधने का कार्य करते हैं, न्यूट्रोन | हमारे
शास्त्र कहते हैं’ पदार्थ हो अथवा प्राणी; सभी का अस्तित्व एक मात्र ‘बंधन’ पर
टिका है | जिस समय मनुष्य इस बंधन से छूट जाता है, वह मुक्त कहलाता है, जीवन-मुक्त
| इस बंधन के टूटने के साथ ही ऊर्जा प्रकट हो जाती है, यही आत्म-बोध है, परमात्मा को
पा लेना है | इस ऊर्जा का अनुभव जीवन-मुक्त व्यक्ति का सानिध्य पाकर किया जा सकता है | परन्तु यह बंधन चाहे
परमाणु का हो अथवा मनुष्य का, तोड़ पाना बहुत ही कठिन है | व्यक्ति में यह बंधन है
माया का, गुणों का और कर्मों का | पदार्थ ही शास्त्रों में वर्णित माया है, उसी में
प्रकार के विभिन्न गुण हैं, जो कर्म करना संभव बनाते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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