क्रमश:
लेकिन ऐसा होना शायद ईश्वर को मंजूर नहीं था|जगत के पिताजी नहीं चाहते थे कि वह जयपुर रहकर पढ़े|क्योंकि जयपुर महंगा शहर है|फिर उनके एक रिश्तेदार बीकानेर रहते है,जिससे जगत की देखभाल भी आसान हो जाती|मजबूर होकर जगत ने बीकानेर पढना स्वीकार कर लिया|उसने बीकानेर मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया|जया को जब इसका पता चलो तो वह मायूस हो गयी|जयपुर में जब जगत साक्षात्कार देकर उसके घर पहुंचा, तो उससे काफी नाराज हुई|दोनो ने कोई नया विकल्प ढूँढने की कोशिश की|फिर इस आश्वासन के साथ अपने शिक्षा स्थानों के लिए निकल गए कि जल्दी ही कोई रास्ता निकल आएगा|
इधर बीकानेर पहुँच कर जगत ने दोस्तों का नया ग्रुप बना लिया|डॉक्टर बनने के सपनो के साथ वह जया की भावनाओं से दूर होता गया|वह जया के प्यार को मात्र अपनी माली हालत के कारण उपजी सहानुभूति समझता रहा|इस दौरान जया से उसका सम्पर्क समाप्तप्राय हो चूका था|और इधर अजमेर में जया उसकी याद में घुट घुट कर जी रही थी|जब जया का दर्द सीमा तोड़ने लगा तो उसने मन ही मन एक निर्णय ले लियाउसने जगत के हॉस्टल फोन कर उसे शीतकालीन अवकाश में जयपुर बुलाया|जगत ने १९ दिसम्बर को रात को जयपुर के लिए निकलने का वादा कर लिया|उसे जयपुर २०/१२ को सुबह जयपुर पहुंचना था|
इधर जया २०/१२ को सुबह जयपुर रेलवे स्टेशन पर अपनी लूना लेकर जगत को लेने पहुँच गयी|ट्रेन आने पर जया ने जगत को काफी ढूंढा,पर जगत नहीं मिला|अब जया अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगी|गुस्से में वह अपनी लूना लेकर घर के लिए निकल पड़ी|
इधर जगत की ट्रेन १९ को छूट गयी|उसने दूसरे दिन की टिकट बनाई और २०/१२ की रात को जयपुर के लिए निकला|२० को सुबह जयपुर स्टेशन पर उसने जया को तलाशा,वह नहीं मिली तो मायूसी लिए रिक्शा लेकर उसके घर जाने को निकला|जया के घर पहुंचा तो वहां मातम पसरा मिला|उसे बताया गया कि कल जब वह स्टेशन से घर लौट रही थी तो एक जीप की चपेट में आ गयी|अस्पताल में काफी कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका और देर रात उसने दम तौड दिया|
अब जगत को अपने लेट होने पर पछतावा हो रहा था|वह पूरी तरह से टूट गया|उसे अब जया की एक एक बात याद आ रही थी|जिसे वह अपने प्रति जया की सहानुभूति समझ रहा था वह उसके प्रति उसका प्रेम था|लेकिन अब सब कुछ समाप्त हो चूका था|जया के अंतिम संस्कार के बाद वह उसकी माँ से मिला|माँ ने बताया कि वह मरते दम तक उसको कितना याद कर रही थी|सब कुछ समाप्त समझ कर जगत वापिस बीकानेर लौट आया|
बीकानेर आने के बाद जगत अवसादग्रस्त हो गया|हर पल ,हर जगह जया की यादें उसका पीछा करती|जया की मौत के लिए वह अपने आप को जिम्मेद्दार समझने लगा|और.....जैसा होता है,उसने एक खतरनाक निर्णय लिया|आत्म हत्या का|ट्रेन तक गया भी,परन्तु उसके एक मित्र के समय पर आ जाने से इस घटना से बच निकला|मित्र ने सारी बातें समझी|अपने एक परिचित ज्योतिषी से उसे मिलाया|ज्योतिषी ने सारा अवलोकन किया और जगत को आशान्वित किया कि जया उसे फिर मिलेगी,पर दूसरा जन्म लेकर|ज्योतिषी का इतना कहना उसे अवसाद से बाहर निकलने के लिए काफी था|अब उसे इंतज़ार था,जया से पुनः मिलने का|उसने१९७९ में M.B.B.S.पूरी की और फिर १९८३ में M.S.(Gynaecology) |जो कि जया करना चाहती थी|उसके बाद उसने राजकीय सेवाकी|जब उसके जानकारी में पुनर्जन्म का एक केस आया तो उसके मन में जया से मिलने की ईच्छा जोर मारने लगी|आखिर १९९९ में राजकीय सेवा छोड़ कर वह उसकी तलाश में निकल पड़ा| तब तक अपने पापा के समझने पर शादी करली और दो बच्चों का पिता भी बनचुका था|
क्रमश :
लेकिन ऐसा होना शायद ईश्वर को मंजूर नहीं था|जगत के पिताजी नहीं चाहते थे कि वह जयपुर रहकर पढ़े|क्योंकि जयपुर महंगा शहर है|फिर उनके एक रिश्तेदार बीकानेर रहते है,जिससे जगत की देखभाल भी आसान हो जाती|मजबूर होकर जगत ने बीकानेर पढना स्वीकार कर लिया|उसने बीकानेर मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया|जया को जब इसका पता चलो तो वह मायूस हो गयी|जयपुर में जब जगत साक्षात्कार देकर उसके घर पहुंचा, तो उससे काफी नाराज हुई|दोनो ने कोई नया विकल्प ढूँढने की कोशिश की|फिर इस आश्वासन के साथ अपने शिक्षा स्थानों के लिए निकल गए कि जल्दी ही कोई रास्ता निकल आएगा|
इधर बीकानेर पहुँच कर जगत ने दोस्तों का नया ग्रुप बना लिया|डॉक्टर बनने के सपनो के साथ वह जया की भावनाओं से दूर होता गया|वह जया के प्यार को मात्र अपनी माली हालत के कारण उपजी सहानुभूति समझता रहा|इस दौरान जया से उसका सम्पर्क समाप्तप्राय हो चूका था|और इधर अजमेर में जया उसकी याद में घुट घुट कर जी रही थी|जब जया का दर्द सीमा तोड़ने लगा तो उसने मन ही मन एक निर्णय ले लियाउसने जगत के हॉस्टल फोन कर उसे शीतकालीन अवकाश में जयपुर बुलाया|जगत ने १९ दिसम्बर को रात को जयपुर के लिए निकलने का वादा कर लिया|उसे जयपुर २०/१२ को सुबह जयपुर पहुंचना था|
इधर जया २०/१२ को सुबह जयपुर रेलवे स्टेशन पर अपनी लूना लेकर जगत को लेने पहुँच गयी|ट्रेन आने पर जया ने जगत को काफी ढूंढा,पर जगत नहीं मिला|अब जया अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगी|गुस्से में वह अपनी लूना लेकर घर के लिए निकल पड़ी|
इधर जगत की ट्रेन १९ को छूट गयी|उसने दूसरे दिन की टिकट बनाई और २०/१२ की रात को जयपुर के लिए निकला|२० को सुबह जयपुर स्टेशन पर उसने जया को तलाशा,वह नहीं मिली तो मायूसी लिए रिक्शा लेकर उसके घर जाने को निकला|जया के घर पहुंचा तो वहां मातम पसरा मिला|उसे बताया गया कि कल जब वह स्टेशन से घर लौट रही थी तो एक जीप की चपेट में आ गयी|अस्पताल में काफी कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका और देर रात उसने दम तौड दिया|
अब जगत को अपने लेट होने पर पछतावा हो रहा था|वह पूरी तरह से टूट गया|उसे अब जया की एक एक बात याद आ रही थी|जिसे वह अपने प्रति जया की सहानुभूति समझ रहा था वह उसके प्रति उसका प्रेम था|लेकिन अब सब कुछ समाप्त हो चूका था|जया के अंतिम संस्कार के बाद वह उसकी माँ से मिला|माँ ने बताया कि वह मरते दम तक उसको कितना याद कर रही थी|सब कुछ समाप्त समझ कर जगत वापिस बीकानेर लौट आया|
बीकानेर आने के बाद जगत अवसादग्रस्त हो गया|हर पल ,हर जगह जया की यादें उसका पीछा करती|जया की मौत के लिए वह अपने आप को जिम्मेद्दार समझने लगा|और.....जैसा होता है,उसने एक खतरनाक निर्णय लिया|आत्म हत्या का|ट्रेन तक गया भी,परन्तु उसके एक मित्र के समय पर आ जाने से इस घटना से बच निकला|मित्र ने सारी बातें समझी|अपने एक परिचित ज्योतिषी से उसे मिलाया|ज्योतिषी ने सारा अवलोकन किया और जगत को आशान्वित किया कि जया उसे फिर मिलेगी,पर दूसरा जन्म लेकर|ज्योतिषी का इतना कहना उसे अवसाद से बाहर निकलने के लिए काफी था|अब उसे इंतज़ार था,जया से पुनः मिलने का|उसने१९७९ में M.B.B.S.पूरी की और फिर १९८३ में M.S.(Gynaecology) |जो कि जया करना चाहती थी|उसके बाद उसने राजकीय सेवाकी|जब उसके जानकारी में पुनर्जन्म का एक केस आया तो उसके मन में जया से मिलने की ईच्छा जोर मारने लगी|आखिर १९९९ में राजकीय सेवा छोड़ कर वह उसकी तलाश में निकल पड़ा| तब तक अपने पापा के समझने पर शादी करली और दो बच्चों का पिता भी बनचुका था|
क्रमश :
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