Friday, July 12, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना |

               अब तक हम इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके है कि पुनर्जन्म होता है|मानवीय स्वभाव के अनुसार मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि पुनर्जन्म की पूरी प्रक्रिया क्या है और यह कैसे संपन्न होती है?
यह सब समझने के लिए हमें शुरुआत वहां से करनी होगी,जहाँ इसे मान्यता है|बिना कुछ माने अज्ञात को ज्ञात करना असंभव है|यह गणित का मूल आधार है|और बिना गणना के विज्ञानं भी पंगु है|अतः अज्ञात को जानने से पहले कुछ मान लेना जरूरी होता है |संसार में सभी प्रचलित धर्मों में मात्र सनातन धर्म ही ऐसा धर्म है जहाँ पुनर्जन्म को माना जाता है और उस पर विश्वास किया जाता है|सनातन का अर्थ होता है-जो पहले था,वर्तमान में है और भविष्य में भी होगा|अतः आगे बढ़ने से पहले सनातन धर्म के बारे में संक्षेप में जान लिया जाये|
                                                                                    सनातन धर्म एक पूर्णकालिक वैज्ञानिक धर्म है|यहाँ पर प्राचीन काल से अब तक जो भी मान्यताएं है,वे सब मात्र ढकोसला नहीं है|प्रत्येक बात को विज्ञानं के आधार पर सही साबित कर ग्रंथों में समाहित की गई है|अतः सनातन धर्म के सभी पौराणिक ग्रंथों की बातों पर अविश्वास करने का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता है|अविश्वास और अनर्गल बातें केवल वही लोग करते है,जो इन ग्रंथो की बजाय छोटी मोटी ऐसी पुस्तकें पढ़ लेते है. जो इधर उधर धर्मिक साहित्य के रूप में बेचीं जा रही है या फिर उन लोगों के विचार अख़बारों में पढ़ लेते है,जो इस धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानते है और ना ही जानना चाहते है|वे व्यक्ति एक तरह से सनातन धर्म के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित होते है|
                   सनातन धर्म का कोई प्रवर्तक नहीं है,बाकी सभी धर्मों के प्रवर्तक है|जैसे ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसामसीह,इस्लाम के मोहम्मद साहब,सिक्ख धर्म के गुरु गोबिंद साहेब इत्यादि|सनातन धर्म में ऋषि मुनि परम्परा रही है|प्रवर्तक की बातें हुबहू धर्मग्रंथो में शामिल  है,और उनपर विश्वास ही करना पड़ता है|ये मात्र एक व्यक्ति के विचार होते है|प्रवर्तक को अवतार या पैगम्बर कहा गया है|सनातन धर्म में ऐसा नहीं है|यहाँ प्राचीन काल में ऋषि एवं मुनि होते थे|ऋषि ,वैज्ञानिक तथा मुनि दार्शनिक -माने जा सकते है|क्योंकि उनका कार्य इसी प्रकार का होता था|ऋषि गण शोध करते थे--जैसे चरक,सुश्रुत आदि|मुनि गण दार्शनिक और विचारक होते थे|दोनों अपने अपने क्षेत्र में पारंगत होते थे और अपने शोध कार्यों और विचारों को पुष्ट कर समय समय पर ग्रंथों की रचना करते थे|आज ये सभी ग्रन्थ हमारी अकाट्य अमूल्य निधि है|
                                   ऋषि जो भी एवं जिस विषय पर शोध करते थे उसे प्रमाणित कर ग्रंथो की रचना करते थे|उसी प्रकार मुनि लोग अपने आद्यात्मिक विचारों को ग्रंथो का रूप दे देते थे|सभी ग्रंथो का सार श्री मद्भागवत गीता को कहा गया है|गीता में पुनर्जन्म का आधार समाहित है|अतः पुनर्जन्म को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने के लिए गीता को आधार बनाना उचित होगा|जितने भी वैज्ञानिकों ने अब तक नए आविष्कार किये है,सभी का आधार सनातन धर्म ग्रन्थ ही रहे है|वैज्ञानिको ने समय समय पर इसको स्वीकार भी किया है|गीता में समाहित पुनर्जन्म को वैज्ञानिक आधार देने को आप एक परिकल्पना भी कह सकते है|इस परिकल्पना का आधार इतना मजबूत है कि आप एक सिरे से इसको नकार नहीं सकेंगे|हो सकता है एक दिन वैज्ञानिक इस परिकल्पना को साकार करदे और पुनर्जन्म को वास्तविकता माने|डॉक्टर ब्रायन विज ,अमेरिका में इस पर शोध किया है और उनकी पुस्तकें पुनर्जन्म को स्वीकार भी करती है|मेरा यह प्रयास साधारण जन को समझाने के लिए है |जिससे वह पुनर्जन्म को स्वीकार करे और अपनी जिंदगी बेहतर तरीके से जिए|

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