क्रमश:
शरीर निर्माण की साधारण प्रकिया अभी हमने समझी है|सतही तौर पर यह आसान लगाती है,परन्तु यह बड़ी जटिल प्रक्रिया है|परन्तु यह प्रक्रिया हमेशा एक कौशिका से ही शुरू होती है|माता एवं पिता से एक एक कौशिका मिलकर फिर एक कोशिका ही बनाती है|इस कोशिका का फिर विभाजन शुरू होताहै|विभाजन के बाद वर्गीकरण शुरू होता है,जो यह तय करता है कि कौन सा अंग कैसे और कहाँ बनना है|उनका कार्य क्या होगा,सब तय हो जाता है|यह भ्रूण विज्ञानं का विषय है|
प्राचीन भारतीय शास्त्रों में सम्पूर्ण शरीरिक विकास जो कि गर्भावस्था के दौरान होता है,उसका चित्रण श्रीमद्भागवत में विस्तार से और वैज्ञानिक तरीके से किया गया है| विज्ञानं और भागवत दोनों में शरीर निर्माण प्रकिया में फर्क नहीं है|आश्चर्य है कि ५००० वर्ष पूर्व कोई भी वैज्ञानिक साधन उपलब्ध न होने पर भी इतना स्पष्ट चित्रण किया गया है|आज विज्ञानं के कारण गर्भावस्था के दौरान होने वाले विकास को और सूक्ष्म रूप से जानने में सफलता मिली है|एक कौशिका से सम्पूर्ण शरीर निर्माण पर हम भ्रूण विज्ञानं(Embryology) भाग में करेंगे|
गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को शरीर के निर्माण इस प्रकार समझाते है--
महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्त्मेव च |
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेंद्रियगोचरा ||गीता १३/५||
अर्थात्,पांच महाभूत , अहंकार ,बुद्धि और(अव्यक्त ) मूल प्रकृति भी तथा दस इन्द्रियां , एक मन और पांच इन्द्रियों के विषय अर्थात् शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध|कुल मिलाकर २४|
पांच महाभूत इस भौतिक शरीर के स्थूल हिस्से के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते है|जब शरीर का निर्माण हो जाता है ,तब वह अपने सूक्ष्म रूप को विकसित करने की तरफ अग्रसर होता है|इस शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियाँ है,जो हमें इस संसार में जो भी उपलब्ध है उनसे परिचय कराती है|ये हैं-आँख या नेत्र,श्रवनेंद्रिय यानि कान,स्वादेंद्रिय यानि जीभ,घ्रानेंद्रिय यानि नाक और स्पर्शेन्द्रिय यानि त्वचा|पांच ही कर्मेन्द्रियाँ है-वाक्(Tongue),पाणी(Upper limbs),पाद(Lower limbs),उपस्थ(Urinary) और पायु(Anus)|पांच ही ज्ञानेन्द्रियों के विषय है-शब्द(Sound),स्पर्श(Touch).रूप(Vision),रस(Taste) और गंध(Smell)| भगवान ने इन दस इन्द्रियों के साथ साथ मन को भी एक इन्द्रिय माना है|इसका कारण यह है कि मन में जो भी इच्छाये.,लालसायें, कामनायें , आदि होती है,उनका सीधा सम्बन्ध इन्द्रियों से ही होता है|अगर व्यक्ति इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेता है ,तो मन पर उसका नियंत्रण स्वयं ही हो जाता है|
विज्ञानं, इन्द्रियों तक की बात स्वीकार करता है|परन्तु मन के बारे में विज्ञानं अभी भी कुछ स्पष्ट नहीं कर पाया है|हो सकता है ,निकट भविष्य में कुछ सटीक प्रगति हो|मन के बारे में मानसिक विभाग जरूर है|जो कि मानवीय मनोविज्ञान जानने कि दिशा में प्रगतिशील है|मानसिक परिवर्तन और मन की कार्यिकी की बारे में कोई उत्साहवर्धक परिणाम अभी तक सामने नहीं आये है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
शरीर निर्माण की साधारण प्रकिया अभी हमने समझी है|सतही तौर पर यह आसान लगाती है,परन्तु यह बड़ी जटिल प्रक्रिया है|परन्तु यह प्रक्रिया हमेशा एक कौशिका से ही शुरू होती है|माता एवं पिता से एक एक कौशिका मिलकर फिर एक कोशिका ही बनाती है|इस कोशिका का फिर विभाजन शुरू होताहै|विभाजन के बाद वर्गीकरण शुरू होता है,जो यह तय करता है कि कौन सा अंग कैसे और कहाँ बनना है|उनका कार्य क्या होगा,सब तय हो जाता है|यह भ्रूण विज्ञानं का विषय है|
प्राचीन भारतीय शास्त्रों में सम्पूर्ण शरीरिक विकास जो कि गर्भावस्था के दौरान होता है,उसका चित्रण श्रीमद्भागवत में विस्तार से और वैज्ञानिक तरीके से किया गया है| विज्ञानं और भागवत दोनों में शरीर निर्माण प्रकिया में फर्क नहीं है|आश्चर्य है कि ५००० वर्ष पूर्व कोई भी वैज्ञानिक साधन उपलब्ध न होने पर भी इतना स्पष्ट चित्रण किया गया है|आज विज्ञानं के कारण गर्भावस्था के दौरान होने वाले विकास को और सूक्ष्म रूप से जानने में सफलता मिली है|एक कौशिका से सम्पूर्ण शरीर निर्माण पर हम भ्रूण विज्ञानं(Embryology) भाग में करेंगे|
गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को शरीर के निर्माण इस प्रकार समझाते है--
महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्त्मेव च |
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेंद्रियगोचरा ||गीता १३/५||
अर्थात्,पांच महाभूत , अहंकार ,बुद्धि और(अव्यक्त ) मूल प्रकृति भी तथा दस इन्द्रियां , एक मन और पांच इन्द्रियों के विषय अर्थात् शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध|कुल मिलाकर २४|
पांच महाभूत इस भौतिक शरीर के स्थूल हिस्से के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते है|जब शरीर का निर्माण हो जाता है ,तब वह अपने सूक्ष्म रूप को विकसित करने की तरफ अग्रसर होता है|इस शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियाँ है,जो हमें इस संसार में जो भी उपलब्ध है उनसे परिचय कराती है|ये हैं-आँख या नेत्र,श्रवनेंद्रिय यानि कान,स्वादेंद्रिय यानि जीभ,घ्रानेंद्रिय यानि नाक और स्पर्शेन्द्रिय यानि त्वचा|पांच ही कर्मेन्द्रियाँ है-वाक्(Tongue),पाणी(Upper limbs),पाद(Lower limbs),उपस्थ(Urinary) और पायु(Anus)|पांच ही ज्ञानेन्द्रियों के विषय है-शब्द(Sound),स्पर्श(Touch).रूप(Vision),रस(Taste) और गंध(Smell)| भगवान ने इन दस इन्द्रियों के साथ साथ मन को भी एक इन्द्रिय माना है|इसका कारण यह है कि मन में जो भी इच्छाये.,लालसायें, कामनायें , आदि होती है,उनका सीधा सम्बन्ध इन्द्रियों से ही होता है|अगर व्यक्ति इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेता है ,तो मन पर उसका नियंत्रण स्वयं ही हो जाता है|
विज्ञानं, इन्द्रियों तक की बात स्वीकार करता है|परन्तु मन के बारे में विज्ञानं अभी भी कुछ स्पष्ट नहीं कर पाया है|हो सकता है ,निकट भविष्य में कुछ सटीक प्रगति हो|मन के बारे में मानसिक विभाग जरूर है|जो कि मानवीय मनोविज्ञान जानने कि दिशा में प्रगतिशील है|मानसिक परिवर्तन और मन की कार्यिकी की बारे में कोई उत्साहवर्धक परिणाम अभी तक सामने नहीं आये है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
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