क्रमश:
शरीर का अपना आकर्षण और प्रतिकर्षण बल (गुरुत्वाकर्षण बल,Gravitational force) होता है और आत्मा का अपना|जब दोनों के गुरुत्वाकर्षण बल आपस में एक दूसरे पर प्रभाव डालते है,तब एक स्थान पर दोनों का बल बराबर बराबर(Balanced) हो जाता है|वही स्थान मन का है|यह स्थिति फिर कैसे परिवर्तित होती है,यह आगे की चर्चा में आएगा|
एक दूसरी शक्ति या उर्जा की चर्चा यहाँ आवश्यक हो जाती है|वह है विद्युतीय उर्जा(Electrical energy)| भौतिक शरीर का आधार भी तत्व ही है,तत्व में परमाणु यानि उर्जा|एक परमाणु का अपना एक केन्द्र(Nucleus) होता है,जिसमे प्रोटोन(Protons) के रूप में धन (Positive)आवेश रहता है|इस केंद्र के चारों और ऋण(Negative) आवेशित इलेक्ट्रोन(Electrons) परिक्रमा करते है|परमाणु विद्युत उत्पादन करते है,जिससे एक विद्युतीय क्षेत्र का निर्माण होता है|इसी तरह से ही आत्मा का भी अपना एक विद्युतीय क्षेत्र(Electrical field) होता है|दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे को प्रभावित करते हैं|इससे एक स्थान पर दोनों का प्रभाव बराबर होता है|इस नए बने केन्द्र का नाम ही मन है|शरीर और आत्मा का प्रभाव जब मन पर बराबर होता है,ऐसी स्थिति में मन किसी के भी पक्ष में नहीं होता है|आप इसे सृष्टि की प्रारंभिक अवस्था में मन की स्थिति कह सकते है.|इस विद्युतीय क्षेत्र की विशेषता यह होती है कि यह विद्युत प्रवाह बंद होने के बाद भी बना रहता है|
विद्युत प्रवाह के दौरान ही एक दूसरे क्षेत्र का निर्माण और होता है-चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic field)|विद्युत प्रवाह के बंद होने के साथ ही चुम्बकीय क्षेत्र भी समाप्त हो जाता है|जब विद्युत प्रवाह होता रहता है,तब विद्युतीय चुम्बकीय क्षेत्र(Electromagnetic field) दोनों साथ साथ होते है|इन दोनों के साथ साथ रहने और अकेले विद्युतीय क्षेत्र के रहने का इस शरीर पर अलग अलग प्रभाव होता है|प्रत्येक जीव में उपस्थित इस विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को जैविक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र () कहा जाता है|जीव में होने वाली सभी क्रियाएँ इसी क्षेत्र के प्रभाव से संपन्न होती है|इन क्रियाओं को ही कर्म() कहा जाता है|
प्रत्येक जीवित शरीर में होने वाली ये क्रियाएँ मुख्यतः तीन प्रकार से होती है|
(१)जैविक कर्म(Biological act)-पहली क्रियाएँ उस प्रकार की होती है जिसमे हो रही क्रियाओं का ज्ञान जीव को नहीं होता,यानि कि उसे महसूस नहीं होता कि शरीर में कुछ घटित हो रहा है||जैसे-भोजन के पचने की क्रिया(Digestion),उपापचय(Metabolism),यकृत (Liver)और गुर्दे(Kidneys) तथा शरीर के अन्य अंगों की क्रियाएँ,अन्तःस्रावी(Endocrine glands) व बाह्य स्रावी (Exocrine glands) ग्रंथियों की क्रियाएँ,साँस लेना और ह्रदय का धडकना आदि|इन क्रियाओं को जैविक कर्म(Biological action) कहा जा सकता है|
(२)प्रतिक्रियात्मक कर्म(Reflex act)- दूसरी क्रियाएँ इस प्रकार की होती है जो किसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप होती है|इन क्रियाओं का ज्ञान आपको रहता है परन्तु आपका नियंत्रण नहीं|ज्ञान के अनुसार आप इन क्रियाओं को कैसे भी करना चाहे,वै होती आपके नियंत्रण में नहीं होती-क्रियाओं का परिणाम आपके पक्ष का भी हो सकता है और विपक्ष का भी |इन क्रियाओं को प्रतिक्रियात्मक कर्म(Reflex act) कहा जा सकता है|
(३)सक्रिय कर्म (Active act)-तीसरी तरह की क्रियाएँ वे होती है जो आप अपने ज्ञान और विवेक से करते हैं,उन पर आपका नियंत्रण होता है और जो आप किसी निश्चित फल प्राप्त करने के उद्देश्य से करते है|फिर भी इसके परिणाम पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता है|इन क्रियाओं को सक्रिय कर्म( Active Act) कहा जा सकता है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
शरीर का अपना आकर्षण और प्रतिकर्षण बल (गुरुत्वाकर्षण बल,Gravitational force) होता है और आत्मा का अपना|जब दोनों के गुरुत्वाकर्षण बल आपस में एक दूसरे पर प्रभाव डालते है,तब एक स्थान पर दोनों का बल बराबर बराबर(Balanced) हो जाता है|वही स्थान मन का है|यह स्थिति फिर कैसे परिवर्तित होती है,यह आगे की चर्चा में आएगा|
एक दूसरी शक्ति या उर्जा की चर्चा यहाँ आवश्यक हो जाती है|वह है विद्युतीय उर्जा(Electrical energy)| भौतिक शरीर का आधार भी तत्व ही है,तत्व में परमाणु यानि उर्जा|एक परमाणु का अपना एक केन्द्र(Nucleus) होता है,जिसमे प्रोटोन(Protons) के रूप में धन (Positive)आवेश रहता है|इस केंद्र के चारों और ऋण(Negative) आवेशित इलेक्ट्रोन(Electrons) परिक्रमा करते है|परमाणु विद्युत उत्पादन करते है,जिससे एक विद्युतीय क्षेत्र का निर्माण होता है|इसी तरह से ही आत्मा का भी अपना एक विद्युतीय क्षेत्र(Electrical field) होता है|दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे को प्रभावित करते हैं|इससे एक स्थान पर दोनों का प्रभाव बराबर होता है|इस नए बने केन्द्र का नाम ही मन है|शरीर और आत्मा का प्रभाव जब मन पर बराबर होता है,ऐसी स्थिति में मन किसी के भी पक्ष में नहीं होता है|आप इसे सृष्टि की प्रारंभिक अवस्था में मन की स्थिति कह सकते है.|इस विद्युतीय क्षेत्र की विशेषता यह होती है कि यह विद्युत प्रवाह बंद होने के बाद भी बना रहता है|
विद्युत प्रवाह के दौरान ही एक दूसरे क्षेत्र का निर्माण और होता है-चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic field)|विद्युत प्रवाह के बंद होने के साथ ही चुम्बकीय क्षेत्र भी समाप्त हो जाता है|जब विद्युत प्रवाह होता रहता है,तब विद्युतीय चुम्बकीय क्षेत्र(Electromagnetic field) दोनों साथ साथ होते है|इन दोनों के साथ साथ रहने और अकेले विद्युतीय क्षेत्र के रहने का इस शरीर पर अलग अलग प्रभाव होता है|प्रत्येक जीव में उपस्थित इस विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को जैविक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र () कहा जाता है|जीव में होने वाली सभी क्रियाएँ इसी क्षेत्र के प्रभाव से संपन्न होती है|इन क्रियाओं को ही कर्म() कहा जाता है|
प्रत्येक जीवित शरीर में होने वाली ये क्रियाएँ मुख्यतः तीन प्रकार से होती है|
(१)जैविक कर्म(Biological act)-पहली क्रियाएँ उस प्रकार की होती है जिसमे हो रही क्रियाओं का ज्ञान जीव को नहीं होता,यानि कि उसे महसूस नहीं होता कि शरीर में कुछ घटित हो रहा है||जैसे-भोजन के पचने की क्रिया(Digestion),उपापचय(Metabolism),यकृत (Liver)और गुर्दे(Kidneys) तथा शरीर के अन्य अंगों की क्रियाएँ,अन्तःस्रावी(Endocrine glands) व बाह्य स्रावी (Exocrine glands) ग्रंथियों की क्रियाएँ,साँस लेना और ह्रदय का धडकना आदि|इन क्रियाओं को जैविक कर्म(Biological action) कहा जा सकता है|
(२)प्रतिक्रियात्मक कर्म(Reflex act)- दूसरी क्रियाएँ इस प्रकार की होती है जो किसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप होती है|इन क्रियाओं का ज्ञान आपको रहता है परन्तु आपका नियंत्रण नहीं|ज्ञान के अनुसार आप इन क्रियाओं को कैसे भी करना चाहे,वै होती आपके नियंत्रण में नहीं होती-क्रियाओं का परिणाम आपके पक्ष का भी हो सकता है और विपक्ष का भी |इन क्रियाओं को प्रतिक्रियात्मक कर्म(Reflex act) कहा जा सकता है|
(३)सक्रिय कर्म (Active act)-तीसरी तरह की क्रियाएँ वे होती है जो आप अपने ज्ञान और विवेक से करते हैं,उन पर आपका नियंत्रण होता है और जो आप किसी निश्चित फल प्राप्त करने के उद्देश्य से करते है|फिर भी इसके परिणाम पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता है|इन क्रियाओं को सक्रिय कर्म( Active Act) कहा जा सकता है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
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