Monday, July 8, 2013

पुनर्जन्म-अवधारणा या वास्तविकता|क्रमश: -९

क्रमश:
             कल के पोस्ट पर कुछ मित्रों ने प्रश्न किये है|कुछ ने फोन पर पूछा है,कुछ ने मेल किये है|आज की पोस्ट में सभी की जिज्ञासाओं का समाधान हो जायेगा ,ऐसा मैं सोचता हूँ|फिर भी किसी की और जिज्ञासा हो तो समय समय पर आने वाली पोस्ट से समाधान होता रहेगा|
                    युक्तः कर्मफलं  त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्|
                    अयुक्तः     कामकारेण  फले  सक्तो   निबध्यते ||गीता५/१२||
अर्थात्,कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके भगवत्प्राप्तिरूप शांति को प्राप्त होता है और सकाम पुरूष कामना की प्रेरणा से फल में आसक्त होकर बंधता है|
         उपरोक्त श्लोक से स्पष्ट हो जाता है कि जितने भी फल की आशा से कर्म व्यक्ति द्वारा किये जाते है,वह उन कर्मो व उत्पन्न फलों में ही उलझ कर रह जाता है|इसी को बंधन कहते है और यही बार बार जन्म लेने का कारण है|जो व्यक्ति कर्मों से उत्पन्न फलों को अपने द्वारा करना नहीं मानता उसके लिए फिर कोई बंधन नहीं रह जाता है|जया  का पुनर्जन्म इसी कर्मबंधन के कारण हुआ है|क्योंकि उसने जगत की सहायता किसी फल की आशा रखते हुए की थी|अगर हर जन्म के साथ कर्मफल का त्याग करते हुए चले तो एक दिन इस जन्म मरण के चक्र से मुक्ति जरूर मिल सकती है|
               आरिफ के पुनर्जन्म में एक साल क्यों लगा?यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है| हो सकता है कि आरिफ के भी एक जन्म पूर्व में किये कर्मो के कारण उसे दूसरी योनियों में जन्म लेना पड़ा हो|कुल ८४ लाख और एक योनियाँ होती है,जिसमे ८४ लाख केवल भोग के लिए होती है,जिनमे मानव जन्मो में किये कर्मों को भोगने के लिए जन्म लेना पड़ता है|केवल मानव जन्म ही ऐसा है जहाँ आप कर्मों के आधार पर अगले जन्म को या मोक्ष को सुनिश्चित कर सकते है|इसलिए मानव जन्म को योग योनि भी कहते है|पूर्व मानव जन्मों के कर्मो को तो इस जन्म में भोगना ही पड़ेगा|अतः मानव योनि भोग एवं योग योनि दोनों है|
                  अब प्रश्न सामने आता है कि एक मानव जन्म और दूसरे मानव जन्म के बीच अगर आत्मा किसी और योनि में नहीं जाती तो क्या होगा?ऐसीस्थिति  में तीन संभावनाएं होती है|
१.तुरंत नया शरीर मानव रूप में मिल जाता है और तत्काल पुनर्जन्म की स्थिति बन जाती है|
२. अगर सत्कर्म किये हो तो देवत्व की स्थिति प्राप्त कर लेते है और पुण्य समाप्त होने पर पुनः मानव योनि प्राप्त कर लेते है|
३.अगर पाप कर्म एक सीमा से अधिक हो तो ऐसे में उसे कोई योनि उपलब्ध नहीं होती और प्रेतात्मा के रूप में भटकती रहती है|ऐसो का उद्धार कैसे होता है,अभी भी स्पष्ट नहीं है|कहा जाता है कि कुछ कर्मकांड ,जो कि उसकी भावी पीढ़ी द्वारा किये जाने पर ही उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल सकती है|
                                     क्रमश:

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