Saturday, July 6, 2013

पुनर्जन्म-अवधारणा या वास्तविकता| क्रमश:-७

क्रमश:
          पुनर्जन्म के दो उदाहरण मैंने आपको दिए है|अब प्रश्न यह उठना स्वाभाविक है कि इन्हें पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी जाये या व्यक्ति विशेष की मानसिक अवस्था माना जाये| मनोवैज्ञानिक इसको केवल मात्र मानसिक परिस्थिति से ज्यादा मानने  को तैयार नहीं है| दोनों ही मामलो को अगर गंभीरता से देखा जाये तो पहला मामला मानसिक अवस्था का तो कदापि हो भी नहीं सकता ,क्योंकि एक तीन साल की मासूम बच्ची,जिसे अभी अपने परिवार के बाकी सदस्यों के नाम तक मालूम नहीं है,वह कैसे अपने भाई के नाम को अपना नाम बता सकती है,जबकि उसके भाई के नाम का जिक्र कभी परिवार में होता भी नहीं था| अतः इस मामले को मानवीय मनोविज्ञान कहना कतई उपयुक्त नहीं होगा|
       अब हम जगत,जया  और सरिता के मामले को लेते है| काफी हद तक यह मामला यह एक मानवीय मनोविज्ञान का हो सकता है|परन्तु केवल इसी दृष्टि से इसको देखना भी त्रुटिपूर्ण होगा|पाठक स्वयं निर्णय करें | मैं कुछ बिन्दु दोनों के ही पक्ष के रख रहा हूँ|
मानवीय मनोविज्ञान के पक्ष में----
१.जगत जो कि १९७३ से १९७४ की अवधि के दौरान मात्र तीन महीने मुश्किल से जया  के साथ रहा होगा|ऐसे में जया  का उसके प्रति अगाध प्रेम का इस हद तक बढ़ जाना लगभग असंभव है|
२. जया  का उसकी तरफ झुकाव दो मनोवैज्ञानिक कारणों से हो सकता है-एक तो वह गरीब था और मेधावी भी तथा दूसरे वह शारीरिक रूप से आकर्षक भी था|
३.जया  की मौत एक हादसा थी और उस वक्त तक जगत का उसके प्रति कोई झुकाव नहीं था|
४.जया  की मौत के बाद जगत का उसके प्रति प्रेम का होना एक मानवीय संवेदना के अतिरिक्त मानना उचित नहीं होगा|
५.जगत का जया की मौत के करीब १५ साल बाद तलाश करना ,जबकि वह शादी करके दो बच्चों का पिता बन चूका था,एक मनोवैज्ञानिक कारण है|विपरीत लिंग की तरफ आकर्षण एक स्वाभाविक पौरूषीय प्रकृति है|जिसके कारण सरिता की तरफ उसका झुकाव  मनोवैज्ञानिक रूप से ही संभव है|
६.सरिता का जगत के प्रति झुकाव का कारण भी यही माना जा सकता है|
७.सरिता को पूर्वजन्म की याद आ जाना मात्र मानसिक कारण से है|जब आप एक कहानी को उसी व्यक्ति को बार बार दुहराते है तो वह व्यक्ति अपने आप को उस कहानी के एक पात्र की तरह समझने लगता है|
पुनर्जन्म का पक्ष-----
१.प्रेम का पैदा होना कभी भी समय और स्थान से ताल्लुक नहीं रखता है|
२.राजसी प्रवृति के व्यक्ति भावुक ज्यादा होते है|इसी के कारण जया  का प्रेम पूर्ण समर्पण को दर्शाता है| गीता का १७ वां अध्याय देखें|
३.जया कि मौत एक हादसा थी,जगत का उसके प्रति प्रेम उस वक्त तक नही था|परन्तु यहाँ पुनर्जन्म जया का होता है ना कि जगत का|जगत को जया के प्रेम का उसकी माँ के द्वारा ही पता चलता है|
४.गीता में स्पष्ट लिखा है कि मरते वक्त जो व्यक्ति के मन  में जो अधूरी ईच्छा  रह जाती है,पुनर्जन्म उसी के अनुरूप होने की सम्भावना रहती है|गीता का  ८ वां अध्याय देखें|
५.जगत एक स्त्री रोग विशेषज्ञ है|उसका वास्ता केवल महिला मरीजों से रहता है|इसके बावजूद उसका फेसबुक के माध्यम से सरिता को जया सा मन लेना मात्र विपरीत लिंग का आकर्षण नहीं माना जा सकता|विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण तो उसके व्यवसाय में हर वक्त उपलब्ध था|
६. सरिता अपने परिवार व पति से पूर्ण संतुष्ट है,अतः सरिता का जगत के प्रति आकर्षण का भी यह कारण नहीं हो सकता|
७.पूर्वजन्म की बातें याद आ जाना कोई मानसिक कारण नहीं है|भारतीय समाज में आज भी अगर कोई पुरूष ऐसी बातें किसी स्त्री से करना चाहे तो वह अकेले ही अपने स्तर पर निपट लेने में सक्षम है|
                                                 अतः केवल यह एक मनोविज्ञान का मामला मान लेना तर्क संगत प्रतीत नहीं होता है|आज विज्ञान को ही एक मात्र सत्य मान लेना और धर्मग्रंथों को झुठला देना ,प्रवृति बनती जा रही है|अज्ञात को जानने के लिए हमें कुछ मान लेना पहले पड़ता है,नहीं तो अज्ञात को कैसे ज्ञात कर पाएंगे| गणित में जैसे कोई राशि ज्ञात करने के लिए हम मान  लेते है कि राम के पास १०० रू. हैं|उसी से आगे बढ़ते हुये हम सही जवाब हासिल कर पातें है,उसी प्रकार पुनर्जन्म को सही रूपसे समझने के लिए हमें किसी एक को मानना पड़ेगा|और इसके लिए गीता से बढ़कर कोई ग्रन्थ नहीं है|
                क्रमश:

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