Wednesday, July 17, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:७ शरीर-२

क्रमश:
          गोस्वामीजी रामचरितमानस में लिखते है--
                    छिती जल पावक गगन समीरा|पंच रचित अति अधम शरीरा||४/११/४||
  एक साधारण से व्यक्ति को इससे अच्छी तरह शरीर के निर्माण के बारे में कोई नहीं समझा सकता,जैसे आज से ५०० वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने समझाया है|बड़ी ही सुन्दर चौपाई है यह|बाली वध के बाद उसकी पत्नी तारा जब बाली के शव के पास बैठकर विलाप करती है,तब भगवान श्रीराम शरीर की रचना और उसकी नश्वरता के बारे में उसे समझाते है|यह नश्वर शरीर पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु एवं आकाश से निर्मित है|गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को पूर्ण रूप से शरीर निर्माण और उसमे स्थित जीवात्मा के बारे में ज्ञान देते है,जिससे उसका इस शरीर और उस जैसे अन्य शरीरों से मोह भंग हो और युद्ध करे|
         शरीर के निर्माण के बारे में गीता एकदम स्पष्ट है,कही पर कोई विरोधाभास नहीं है|
                              भूमिरापोSनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च |
                               अहंकार इतीयं में भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ||
                            अपरेयमितस्त्वन्याँ प्रक्रिति विद्धि में पराम्|
                                जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्||गीता७/४-५||
           अर्थात्, पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,वायु ,आकाश ,मन ,बुद्धि और अहंकार -इस प्रकार आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है |यह तो मेरी अपरा यानि जड़ प्रकृति है,|हे महाबाहो!इससे दूसरी को ,जिससे यह सम्पूर्ण जगत् धारण किया जाता है मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान|
                 यहाँ गीता में शरीर निर्माण में पंच महाभूतों(पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश)के अलावा मन ,बुद्धि और अहंकार को भी शामिल किया गया है|भगवान ने इनको अपरा प्रकृति बताया है|   अपरा यानि स्थूल ( Macro)विज्ञानं के अनुसार शरीर निर्माण में पंचमहाभूतों में से आकाश को शरीर निर्माण में स्थान नहीं दिया गया है|लेकिन यह अंतर कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता है| जिस प्रकृति को भगवान ने चेतन ,परा,या सूक्ष्म (Micro) बताया है,उसकी अनुपस्थिति में  केवल शरीर से कुछ भी कल्पना नहीं की जा सकती|पंच महाभूत तो है ही अपरा प्रकृति के ,परन्तु मन ,बुद्धि और अहंकार इस स्थूल शरीर में चेतन अवस्था में आने के के लिए बीचकी अवस्था(Transitional phase) है|अतः एक प्रकार से देखा जाये तो मन, बुद्धि और अहंकार न तो पूर्णतया स्थूल प्रकृति के है और न ही चेतन प्रकृति के|
                             उपरोक्त श्लोक में एक विशेष बात ध्यान देने योग्य है|भगवान ने पूरी शरीर रचना का वर्णन एक दम वैज्ञानिक तरीके से किया है|पृथ्वी से लेकर चेतन तक की यात्रा स्थूल से लेकर सूक्ष्मतम की यात्रा बताई है|पृथ्वी से सूक्ष्म जल;जल से सूक्ष्म अग्नि;अग्नि से सूक्ष्म वायु;वायु से सूक्ष्म आकाश;आकाश से सूक्ष्म मन;मन से सूक्ष्म बुद्धि;और बुद्धि से सूक्ष्म अहंकार और अन्त में इन सबको धारण करने वाली सूक्ष्मतम चेतन प्रकृति|
          शरीर विज्ञानं के अनुसार शरीर की इकाई कोशिका है|कोशिकाएं मिलकर उत्तकों का निर्माण करती है|उत्तक मिलकर अंगों का निर्माण करते है|और अंगों से शरीर निर्माण होता है|कोशिका का निर्माण इन्ही पंच भौतिक तत्वों से होता है|एक कोशिका में बाहरी आवरण (Cellular membrane) और उसे जुडी अन्य झिल्लियाँ (Endoplasmic reticulum) पृथ्वी है,जिसमे वही तत्व आपको मिलेंगे जो इस पृथ्वी पर है|इसमे साईंटोप्लाजम(Cytoplasm) जल से निर्मित है|मायटोकोन्डरीया(Mitochondria) अग्नि से निर्मित है|वायु में ओक्सीजन(Oxygen) इसका मूल आधार है और वेक्युओल्स (Vacuoles),आकाश से निर्मित है|यही कौशिका पूरे शरीर की इकाई है|कोशिकाओं से उत्तक,फिर उत्तकों से अवयव का निर्माण होता है जैसे-यकृत,गुर्दा,ह्रदय,फेफड़े इत्यादि|समस्त ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियों का निर्माण भी विभिन्न प्रकार के उत्तकों से होता है|
         CELLS---TISSUES-----ORGANS-------BODY
         इस प्रकार हम देखते है कि एक कोशिका से पूरे शरीर का निर्माण सम्भय है|
       क्रमश:
                                                 || हरि शरणम् ||

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